Dhar Bhojshala News: मंदिर या मस्जिद, क्या है धार का भोजशाला विवाद, जानिए कैसे उलझी कहानी, यहाँ समझें पूरा मामला

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भोजशाला विवाद से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सर्वे के निर्णय को अधर में छोड़ दिया है। इस घटनाक्रम के बाद, भोजशाला फिर से समाचारों में छाई हुई है। आइए जानते हैं कि यह विवाद क्या है और इसकी शुरुआत कैसे हुई।

Dhar Bhojshala News: मंदिर था या मस्जिद, क्या है धार का भोजशाला विवाद, जानिए कैसे उलझी कहानी, यहाँ समझें पूरा मामला

Dhar Bhojshala News

विशेषताविवरण
स्थानधार, मध्य प्रदेश, भारत
मुख्य विवादपूजा और नमाज के अधिकार को लेकर विवाद
इतिहासिक महत्वराजा भोज द्वारा स्थापित, बाद में विभिन्न आक्रमणों में कई बार निर्माण और पुनर्निर्माण हुआ
कानूनी घटनाक्रमविभिन्न याचिकाएं हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं, सर्वे के आदेश जारी
वर्तमान स्थितिन्यायालयीन लड़ाई जारी, सार्वजनिक पूजा और नमाज पर विभिन्न निर्णय
सामाजिक-राजनीतिक प्रभावधार्मिक और राजनीतिक समूहों के बीच तनाव, चुनावी मुद्दा बना

भोजशाला सर्वेक्षण

ज्ञानवापी के बाद, अब धार की भोजशाला सुर्खियों में। आइए समझें कि क्यों एक बार फिर से उठा है इस विवाद का मुद्दा। मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला विवाद ने फिर से तूल पकड़ लिया है। पुरातत्व सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) ने इंदौर हाईकोर्ट के निर्देशानुसार इस स्थल पर सर्वेक्षण का काम आरंभ किया। इस सर्वेक्षण के परिणामों के आधार पर निर्णय लिया जाएगा कि यहाँ पूजा अधिकार दिया जाएगा या नमाज के लिए। इस सर्वेक्षण के विरोध में मुस्लिम समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सर्वेक्षण पर रोक लगाने से मना कर दिया। सर्वेक्षण सख्त सुरक्षा में आरंभ हुआ। आखिर भोजशाला क्या है और इसके इर्द-गिर्द विवाद क्यों बना हुआ है? हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला क्यों पहुंचा और सर्वेक्षण क्यों आवश्यक हुआ, चलिए विस्तार से जानते हैं।

भोजशाला मंदिर की कहानी

धार जिले की सरकारी वेबसाइट के अनुसार, भोजशाला मंदिर का निर्माण राजा भोज ने करवाया था। राजा भोज, जो परमार वंश के प्रमुख शासक थे, ने 1000 से 1055 ईस्वी संवत तक राज्य किया। उन्होंने 1034 में एक बड़े विद्यालय की नींव रखी, जिसे वक्त के साथ भोजशाला के नाम से पहचाना जाने लगा। यहां अनेक स्थानों से विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।

भोजशाला का इतिहासिक परिवर्तन: 1456 का घटनाक्रम

इतिहासकार बताते हैं कि 13वीं और 14वीं सदी में मुगलों ने भारत पर आक्रमण किए। 1456 में महमूद खिलजी ने भोजशाला में मौलाना कमालुद्दीन की मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया, और इसी क्रम में प्राचीन सरस्वती मंदिर भोजशाला को गिराकर उसे नया रूप दिया गया। आज भी भोजशाला में प्राचीन हिंदू सांस्कृतिक अवशेष साफ दिखाई देते हैं। इस घटना के बाद से भोजशाला के मुक्ति के लिए विवाद चल रहा है।

राजा आनंद राव पवार और भोजशाला में नमाज की अनुमति

अंग्रेजों के अधीन एक सर्वेक्षण में, भोजशाला की खुदाई से माता सरस्वती की प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई, जो बाद में उनके साथ इंग्लैंड ले जाई गई। लंबे समय तक उपेक्षित रही भोजशाला में, रियासती दौर में राजा के घोड़ों के लिए चारा रखा जाता था। इसी कालखंड में, जब धार के राजा आनंद राव पवार की तबीयत गंभीर रूप से बिगड़ गई, मुस्लिम समाज ने दुआ के लिए भोजशाला में स्थान मांगा। तत्कालीन दीवान खंडेराव नाटकर ने 1933 में उन्हें नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी। इसके विपरीत, हिंदू समाज ने हर वर्ष बसंत पंचमी के अवसर पर यहाँ आयोजन किया।

दिग्विजय सिंह सरकार का भोजशाला आदेश और बढ़ता विवाद

भारतीय स्वतंत्रता के बाद, भोजशाला में पूजा और नमाज के अधिकार को लेकर विवाद गहराता गया, जो कानूनी संघर्ष में बदल गया। 1995 की एक घटना ने इसे और जटिल कर दिया, जिसके बाद प्रशासन ने नमाज और पूजा के लिए समय निर्धारित किया। 1997 में, सार्वजनिक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिससे विवाद और बढ़ गया।

6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में प्रवेश पर रोक लगा दी, परंतु मुस्लिम समुदाय के लिए नमाज की अनुमति बरकरार रखी गई। इस दौरान दिग्विजय सिंह की सरकार ने एकतरफा आदेश जारी किया, जिससे विवाद और भी गहरा हो गया। 2003 में कोर्ट के फैसले के बाद हिंदुओं को पुनः पूजा की अनुमति मिली और पर्यटकों के लिए भोजशाला खोल दी गई। हालांकि, हर साल बसंत पंचमी के आयोजन के दौरान, खासकर जब यह शुक्रवार को पड़ती है, तो विवाद फिर से उभर आता है, जिससे धार जिला कई बार तनाव की स्थिति में रहता है।

भोजशाला विवाद पर भाजपा की विजयी राजनीति

2003 के विधानसभा चुनाव में, भोजशाला विवाद को मुख्य मुद्दा बनाकर, भाजपा ने मध्य प्रदेश में बड़ी सफलता हासिल की, जिसके परिणामस्वरूप उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। इस जीत के बाद, भाजपा सरकार ने लंदन में म्यूजियम में रखी मां सरस्वती की प्रतिमा को वापस लाने और भोजशाला में पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। इस प्रयास के साथ ही भोजशाला की मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने की बात कही गई। हाल ही में, न्यायालय में भोजशाला के सर्वे के निर्णय को सुरक्षित रखे जाने के बाद इस मुद्दे पर चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है।

1902 की रिपोर्ट और भोजशाला का इतिहासिक महत्व

हाईकोर्ट में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की 1902 की रिपोर्ट का जिक्र किया गया है। इस दौर में लॉर्ड कर्जन ने धार और मांडू का दौरा किया था और भोजशाला के संरक्षण के लिए 50 हजार रुपये आवंटित किए थे। उसी समय एक सर्वे भी किया गया था। 1951 में, धार भोजशाला को नेशनल मॉन्यूमेंट के रूप में घोषित किया गया, जिसमें भोजशाला और कमाल मौला की मस्जिद का उल्लेख था।

हिंदू फॉर जस्टिस ट्रस्ट ने इस मुद्दे पर याचिका दायर की है, और उनके वकील हरिशंकर जैन ने तर्क दिया कि 1902 के सर्वे में भोजशाला में हिंदू प्रतीक, संस्कृत शब्दों का पता चला था। उनका कहना है कि इसका वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन होना चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके। इस बीच, दूसरे पक्ष ने कहा कि जबलपुर कोर्ट में भी इस संबंध में एक याचिका विचाराधीन है। हाईकोर्ट ने उस याचिका की जानकारी कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिए हैं।

भोजशाला मंदिर और देवी की पूजा

भोजशाला मंदिर मां सरस्वती, जो ज्ञान और शिक्षा की देवी हैं, को समर्पित है। राजा भोज ने विद्यालय के निर्माण के समय ही यहां मां सरस्वती की मूर्ति स्थापित की थी। इस स्थल पर विद्यार्थियों का आगमन शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से होता था।

भोजशाला: मंदिर से मस्जिद का सफर

कहा जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण किया। उसके बाद, इस जगह की किस्मत ही बदल गई। मीडिया सूत्रों के अनुसार, 1401 ईस्वी में दिलवार खान गौरी और बाद में 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने भोजशाला में मस्जिद का निर्माण करवाया। 19वीं सदी में इस स्थल पर खुदाई के दौरान मां सरस्वती की मूर्ति मिली, जिसे बाद में अंग्रेज लंदन ले गए, जहाँ यह अब भी संग्रहालय में है। इस मूर्ति को भारत वापस लाने के लिए भी विवाद जारी है।

भोजशाला विवाद की उत्पत्ति

भारत की आजादी के बाद, भोजशाला में पूजा और नमाज को लेकर विवाद तेज हो गया। यह मुद्दा कानूनी जंग में तब्दील हो गया। 1995 में एक घटना ने इस विवाद को और बढ़ा दिया। इसके चलते, प्रशासन ने तय किया कि मंगलवार को हिंदू समुदाय पूजा करेगा और शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय नमाज अदा करेगा। 1997 में, प्रशासन ने भोजशाला में सामान्य जनता के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी। इसके बाद हिंदुओं को केवल बसंत पंचमी के दिन पूजा की अनुमति दी गई, जबकि मुसलमानों को हर शुक्रवार को दोपहर 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की इजाजत दी गई। 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में प्रवेश पर आगामी आदेश तक रोक लगा दी, पर मुसलमानों के लिए नमाज पढ़ने की अनुमति बनी रही। इस निर्णय ने विवाद को और भी जटिल बना दिया।

भोजशाला की व्यवस्था में 2003 में नया मोड़

7 अप्रैल 2003 को पुरातत्व सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) ने भोजशाला में नई व्यवस्था अपनाई। इसके तहत, हिंदुओं को मंगलवार को परिसर में पूजा करने की इजाजत दी गई, जबकि मुस्लिम समुदाय को शुक्रवार को नमाज की अनुमति मिली। हालांकि, जब बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ती है, तब इस स्थल पर विवाद और भी बढ़ जाता है। इस दिन, दोनों समुदाय अपने-अपने अधिकार के लिए आपस में टकराव की स्थिति में आ जाते हैं।

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