Bheem Hidimba And Ghatotkach Story In Hindi महाभारत काल के समय की घटनाओं का यदि विश्लेषण किया जाये, तो हमें पता चलता है कि हर घटना के घटित होने का कोई न कोई कारण अवश्य होता हैं. इसके कई उदाहरण मिल जाएँगे, जैसे – कुरु कुल के महाराज पांडु की पत्नि कुन्ति को महर्षि दुर्वासा द्वारा एक मंत्र वरदान स्वरुप दिया गया था, जिसके उच्चारण से वे किसी भी देवता का आव्हान करके उसी देव के समान पुत्र की प्राप्ति कर सकती थी. उस समय ये किसे पता था कि भविष्य में उनका विवाह महाराज पांडु से होगा और उन्हें एक ऋषि द्वारा दिए गये श्राप के कारण वे संतान प्राप्ति में असक्षम होंगे और इस प्रकार उन्हें मिला यह वरदान उनके भविष्य में हुई महत्वपूर्ण घटनाओं का कारण बना.
पांडु पुत्र भीम और राक्षसी हिडिम्बा के विवाह की कथा और घटोत्कच का बलिदान
Bheem Hidimba And Ghatotkach Story In Hindi
ऐसा केवल मनुष्यों के साथ ही नहीं होता, बल्कि इन भूत और भविष्य की घटनाओं के संबंध से स्वयं ईश्वर तक अछूते नहीं हैं. एक बार भगवान श्रीहरि विष्णु ने एक बार हंसी ठिठोली करते हुए, देवर्षि नारद का चेहरा वानर [बंदर] का बना दिया और इस कारण देवर्षि नारद ने क्रोध के वशीभूत होकर भगवान श्रीहरि विष्णु को श्राप दे दिया कि वे भी जब मानव अवतार लेंगे, तो जिस वानर रूप की उन्होंने हंसी उड़ाई हैं, उन्हें इन्हीं वानरों से सहायता लेनी होगी और देखिये ऐसा हुआ भी, जब भगवान श्रीहरि विष्णु ने राम अवतार लिया, तब उनकी सहायता वानर सेना के वानरों ने ही की थी. भूतकाल में मिला श्राप आगे चलकर भविष्य में भगवान के लिए भी वरदान में बदल गया.
इन्हीं कारणों से कहा भी जाता हैं कि जो होता हैं, अच्छे के लिए ही होता हैं.
इसी प्रकार की एक घटना घटित हुई थी, महाभारत काल में. यह घटना घटित हुई थी -: कुरु कुल के महाराज पांडु और महारानी कुन्ति के द्वितीय पुत्र अति बलशाली भीम और राक्षसों के राजा हिडिम्ब की बहन हिडिम्बा के साथ. इनका विवाह होने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था क्योंकि भीम मनुष्य थे और हिडिम्बा राक्षस प्रजाति से संबंध रखती थी. परन्तु परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनी कि इनका विवाह हो गया और केवल यहीं नहीं, इनका पुत्र, जिसका नाम घटोत्कच था, उसके द्वारा महाभारत युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा की गयी. महाभारत की कथाओं के बारे में हिंदी में यहाँ पढ़ें.
पांडु पुत्र भीम और राक्षसी हिडिम्बा के विवाह की कथा [Story of Bheem & Hidimbaa Marriage] -:
महाराज धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन, शकुनि और अन्य कौरवों ने मिलकर पांडवों की हत्या करने के लिए षड्यंत्र रचा था और इस षड्यंत्र के अंतर्गत उन सभी ने मिलकर लाख और मांस, आदि से जो लाक्षागृह बनाया था, उसमें कौरवों ने आग लगा दी और इस लाक्षागृह की आग से पांडव जैसे – तैसे बचकर निकले थे. यहाँ से बचकर वे गुप्त मार्ग से निकलकर जंगल में प्रवेश कर गये. इस जंगल में भटकते हुए जब वे लाक्षागृह और कौरवों के राज्य की सीमा से बहुत दूर निकल गये और स्वयं को सुरक्षित महसूस करने लगे, तो उन्होंने कुछ देर जंगल में ही विश्राम करने का निर्णय लिया. शकुनी कौरवों का हितेषी नहीं, बल्कि उनका विरोधी था.
मायावी वन में प्रवेश और भीम एवं हिडिम्बा का प्रथम मिलन [Entered in a magical forest and First meeting of Bheem & Hidimbaa]-:
वन में भटकते – भटकते रात हो गयी और महारानी कुन्ति और सभी पांडव रात होने पर जंगल में ही सो गये, परन्तु सभी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, पांडु पुत्र भीम जागकर पहरा देने लगे. जिस जंगल में महारानी कुन्ति और सभी पांडव प्रवेश कर गये थे और विश्राम कर रहे थे, वह एक मायावी वन[magical forest] था. इस वन में राक्षसों का राज था और राक्षसों के राजा हिडिम्ब ने इस पूरे वन में अपनी माया का जाल बिछा रखा था. ये सभी राक्षस नर भक्षी थे अर्थात् वे भोजन के रूप में मनुष्यों को खाते थे. राक्षसों के राजा हिडिम्ब ने मनुष्य की गंध महसूस कर ली थी और अब वो सभी पांडवों को अपना और अपनी राक्षस प्रजाति का भोजन बनना चाहता था. इसके लिए राक्षसों के राजा हिडिम्ब ने अपनी बहन राक्षसी हिडिम्बा को बुलाया और उसे उन सभी मनुष्यों को अपने निवास स्थान तक लाने का काम सौंपा. अपने भाई राक्षसराज हिडिम्ब का आदेश पाकर, राक्षसी हिडिम्बा इस कार्य को पूर्ण करने के लिए सभी पांडवों को ढूंढकर लाने के लिए निकल पड़ी. जब राक्षसी हिडिम्बा ने पांडवों के निकट पहुँची, तो उसने देखा कि अन्य सभी पांडव तो विश्राम कर रहे थे, परन्तु उनमें से एक जागकर पहरा दे रहा था, वे पांडु पुत्र भीम थे. राक्षसी हिडिम्बा भीम को देखते ही उन पर मुग्ध हो गयी और उनसे प्रेम करने लगी.
जैसे ही राक्षसी हिडिम्बा ने भीम को देखा तो वे उनसे प्रेम करने लगी और सुन्दर सा रूप धारण कर, उनके समीप जाकर उनसे विवाह करने की बात रखी और इसी के साथ वे अपने असली रूप में आ गयी, अपना परिचय दिया और उन्हें अपने भाई राक्षस हिडिम्ब की सभी पांडवों को खा जाने की योजना के बारे में भी बताया. भीम को इस बात पर क्रोध आ गया और वे माता कुन्ति तथा अन्य सभी भाइयों के साथ राक्षसों के निवास स्थान तक जा पहुँचें.
पांडु पुत्र भीम और राक्षसराज हिडिम्ब के मध्य युद्ध [Fight between Bheem and Demon King Hidimb] -:
माता कुन्ति के साथ सभी पांडवों के राक्षसों के निवास स्थान पहुँचने पर, हिडिम्ब बहुत खुश हुआ कि उसकी बहन हिडिम्बा भोजन स्वरुप सभी मनुष्यों को लेकर आ गयी थी, परन्तु जैसे ही उसे ये पता चला कि हिडिम्बा भीम से प्रेम करने लगी, उससे विवाह करना चाहती हैं और साथ ही साथ सभी पांडवों और माता कुन्ति को अपना भोजन न बनाने के लिए प्रार्थना करती हैं तो हिडिम्ब क्रोधित हो गया और भीम को युद्ध की लिए ललकारा. तब भीम और हिडिम्ब के बीच भयानक युद्ध होता हैं. जिसमें भीम तो बलशाली थे ही, परन्तु राक्षसराज हिडिम्ब भी बहुत बलशाली था. इस युद्ध में भीम द्वारा राक्षसराज हिडिम्ब का वध कर दिया जाता हैं और इस प्रकार भीम विजयी घोषित होते हैं. इस समय भीम इतने क्रोध में थे कि वे राक्षसी हिडिम्बा को भी मार देना चाहते थे. उनका ऐसा करने के पीछे यह विचार था कि अपने भाई हिडिम्ब के वध का बदला लेने के लिए कहीं हिडिम्बा उन सभी पांडवों और माता कुन्ति को कोई हानि न पहुंचाएं. परन्तु ज्येष्ठ पांडु पुत्र युधिष्ठिर के समझाने पर भीम का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने राक्षसी हिडिम्बा को छोड़ दिया.
राक्षसी हिडिम्बा का विवाह प्रस्ताव [Marriage proposal by Demon Hidimbaa] -:
राक्षसों की एक परंपरा के अनुसार, जो व्यक्ति राक्षसों के राजा को मारता हैं, उसका विवाह उस राक्षसराज की बहन या बेटी से किया जाता हैं और वही व्यक्ति राक्षसों का राजा भी नियुक्त किया जाता हैं. ऐसी बात जब माता कुन्ति और पांडवों को बताई गयी और भीम और हिडिम्बा के विवाह का प्रस्ताव रखा गया, तो माता कुन्ति और भीम ने इसे अस्वीकार कर दिया. इस विवाह को अस्वीकार करने के पीछे यह कारण था कि हिडिम्बा और भीम, दोनों ही अलग – अलग प्रजातियों से संबंध रखते थे, एक मनुष्य था, तो दूसरी राक्षसी. इसी के साथ दूसरा कारण ये था कि माता कुन्ति के साथ सभी पांडवों ने अपने वनवास का कारण बताया और इस प्रकार विवाह करके उस स्थान पर रुक जाने में अपनी असमर्थता जताई. तब हिडिम्बा ने माता कुन्ति को ये विश्वास दिलाया और वचन दिया कि उन दोनों की प्रजातियों के भिन्न होने के कारण किसी भी पांडव को कोई मुश्किल नहीं होगी और जैसे ही हिडिम्बा को एक संतान की प्राप्ति हो जाएगी, वैसे ही आप सभी इस स्थान को छोड़कर चले जाना. हिडिम्बा के इस वचन को सुनकर और उसके सच्चे प्रेम को देखकर माता कुन्ति ने भीम और हिडिम्बा के विवाह के प्रस्ताव को मान लिया और इस प्रकार उन दोनों का विवाह राक्षसी रीति – रिवाजों के साथ संपन्न कराया गया.
राक्षसी हिडिम्बा और पांडु पुत्र भीम को संतान प्राप्ति [Birth of Bheem & Hidimbaa’s Child] -:
हिडिम्बा और भीम के विवाह के साथ ही साथ भीम को राक्षसों का नया राजा भी घोषित किया गया. इस प्रकार समय बीतता रहा और एक ही वर्ष में हिडिम्बा और भीम के घर पुत्र का जन्म हुआ. जिस बालक का जन्म हुआ था, उसका सिर घड़े की भांति चमक रहा था, इसलिए भीम ने उसका नाम “घटोत्कच” रखा. अब समय था, जब हिडिम्बा को अपने वचन का पालन करना था और भीम सहित सभी पांडवों तथा माता कुन्ति को उस स्थान को छोड़कर जाने का समय आ गया था. इस समय भीम ने अपने पुत्र घटोत्कच को राक्षसों का नया राजा नियुक्त किया और अपने परिवार से विदा ली. विदा लेते समय घटोत्कच द्वारा भीम को वचन दिया जाता हैं कि जब भी भीम उसका नाम [घटोत्कच का नाम] 3 बार पुकारेंगे, तब वह उनके समक्ष उपस्थित हो जाएगा.
घटोत्कच का बलिदान [Ghatotkach Story]–:
महाभारत युद्ध के समय जब भगवान इंद्र छलपूर्वक महारथी कर्ण से उनके कवच और कुंडल का दान प्राप्त करते हैं और महारथी कर्ण सारी सच्चाई जानते हुए, भी अपने दानी आचरण का पालन करते हुए, बिना अपने प्राणों की परवाह किये, उन्हें कवच और कुंडल दान कर देते हैं तो भगवान इंद्र बहुत खुश होते हैं और महारथी कर्ण को वरदान स्वरुप एक दिव्य अस्त्र प्रदान करते हैं, जिसका वार कभी खाली नहीं जाता, परन्तु महारथी कर्ण द्वारा इस दिव्यास्त्र का एक ही बार उपयोग किया जा सकता हैं. कर्ण के जीवन की रोचक बातें यहाँ पढ़ें.
जिस दिन महारथी कर्ण द्वारा पांडु पुत्र अर्जुन को मारने की योजना बनाई जाती हैं, तो इसका पता भगवान श्रीकृष्ण को चल जाता हैं और वे समझ जाते हैं कि महारथी कर्ण उस दिव्यास्त्र का प्रयोग अर्जुन के प्राण लेने में करेंगे, तब वे इसका उपाय ढूंढते हैं. भगवान श्रीकृष्ण भीम को अपने पुत्र घटोत्कच को युद्ध में सहायता करने के लिए बुलाने को कहते हैं और भीम अपनी हारती हुई सेना को बचाने के लिए घटोत्कच का आव्हान करते हैं. भीम द्वारा घटोत्कच का नाम जैसे ही 3 बार पुकारा जाता हैं, वैसे ही घटोत्कच अपने पिता भीम के सामने प्रकट हो जाता हैं. तब भीम, आदि उसे युद्ध में उन पर आये संकट के बारे में बताते हैं और उससे सहायता करने के लिए कहते हैं. तब घटोत्कच युद्ध भूमि में पहुँच कर कौरवों की सेना को ख़त्म करने लगता हैं और चूँकि वह राक्षस हैं तो मनुष्यों का कोई भी अस्त्र – शस्त्र उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता. घटोत्कच के युद्ध भूमि में आने से कौरवों को अपनी विजय, पराजय में बदलती हुई प्रतीत होती हैं और वे उसके विनाश से भयभीत हो जाते हैं. इस सभी परिस्थितियों को देखते हुए दुर्योधन अपने मित्र महारथी कर्ण से भगवान इंद्र द्वारा वरदान स्वरुप दिए गये दिव्य अस्त्र का घटोत्कच पर प्रयोग करने के लिए विवश करते हैं और महारथी कर्ण को ना चाहते हुए भी उस दिव्य अस्त्र का प्रयोग घटोत्कच पर करना पड़ता हैं और इस प्रकार भीम का पुत्र घटोत्कच युद्ध में वीरगति को प्राप्त करते हुए भूमि पर धराशायी हो जाता हैं.
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण की योजनानुसार घटोत्कच, अपने काका अर्जुन के प्राणों की रक्षा के लिए स्वयं के प्राणों का बलिदान दे देता हैं. महाभारत पत्रों का पूर्व जन्म रहस्य यहाँ पढ़िए.
इस प्रकार भीम और हिडिम्बा के भूतकाल में हुए विवाह का प्रयोजन ये था कि उनकी संतान भविष्य में होने वाले युद्ध में अपना बलिदान देकर पांडवों की विजय सुनिश्चित करेगी.