बाल मजदूर, मजबूर हैं (Baal Majdoor) हिंदी कविता

बाल मजदूर, मजबूर हैं (Baal Majdoor) हिंदी कविता  लिख कर ही रोंगटे खड़े हो गए हैं ऐसी जिन्दगी नहीं देखी,बस कल्पना मात्र से ही कम्पन्न महसूस होता हैं | शायद जानते हैं 18 वर्ष से कम के बच्चो को पढ़ना चाहिए पर क्या वे ये कर सकते हैं पेट की भूख ही तो जीवन का आधार हैं उसे कैसे वो भूल सकते हैं ? माना आज विद्यालयों में भोजन मिलता हैं पर क्या केवल उनके पेट भर जाने से परिवार चलता हैं ? अगर उच्च समाज उन्हें यूँही दो वक्त को खाने देदे तो क्या उनका जीवन बन जाएगा ? कभी-कभी भविष्य बनता भी हैं पर कभी-कभी ऐसी मदद से जीवन बिगड़ता भी हैं |

बाल मजदूरी (Baal Majdoori)कोई शौक नहीं हैं उनकी मजबूरी हैं | केवल नियम बनाने से कुछ नहीं होगा हल ढूंढना जरुरी हैं | ऐसे हालातों को देख कर सच में फिर वही याद आता हैं कि मंदिरों की दान पेटी को भरने से ज्यादा अच्छा हैं इन बच्चों की मदद करना इनका जीवन बनाना | जब PK जैसी फ़िल्में सच्चाई दिखाती हैं तो बुरा लग जाता हैं | पर क्या जो भगवान एक अद्भुत शक्ति हैं वो हम जैसे तुच्छ लोगो के चंद सिक्को पर चलते हैं नहीं बिलकुल नहीं | इस पैसे की जरुरत भगवान को नहीं इन जैसे बाल मजदूरों (Baal Majdoor) को हैं |यह पैसा राज कोष में जाता हैं और फिर काला धन बन जाता हैं जिससे नेताओं के जीवन में तो उजाला आता हैं पर इन मासूम के जीवन में अँधेरा छा जाता हैं |

सभी को जागने की जरूरत हैं और यह देखने की जरुरत हैं कि हम अपने पैसों का सही इस्तेमाल करें उसे मंदिर में देने या नदी में बहाने के बजाय किसी मजबूर की सहायता करे |

बाल मजदूर हिंदी कविता

Baal Majdoor Kavita Poem In Hindi

बाल मजदूर, मजबूर हैं

कंधो पर हैं जीवन का बोझ
किताबों की जगह हैं रद्दी का बोझ

जिस मैदान पर खेलना था
उसको साफ़ करना ही जीवन बना

जिस जीवन में हँसना था
वो आँसू पीकर मजबूत बना

पेट भरना होता क्या हैं  
आज तक उसे मालूम नहीं

चैन की नींद सोना क्या हैं
आज तक उसने जाना नहीं

बचपन कहाँ खो गया
वो मासूम क्या बतायेगा

जीवन सड़क पर गुजर गया
वो याँदें क्या सुनाएगा

कभी तरस भरी आँखों से
वो दो वक्त की खाता हैं

कभी धिक्कार के धक्के से

वो भूखा ही सो जाता हैं

बाल मजदूरी पाप हैं
नियम तो बना दिया

ये उसके हीत में हैं ?
या जीवन कठिन बना दिया

जब आज खतरे में हैं
वो क्या भविष्य बनायेगा

जब पेट की भूख ही चिंता हैं
तो क्या वो पढ़ने जायेगा

बाल मजदूर, मजबूर हैं
नियम और सताता हैं

अगर देश का भविष्य बनाना हैं
तो इस मजबूरी को हटाना हैं

कर्णिका पाठक

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