छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन परिचय, कौन थे, इतिहास, मृत्यु कैसे हुई, जयंती 2024, वंशज, युद्ध, हिंदी कविता, निबंध (Chhatrapati Shivaji Maharaj Biography, History in Hindi) (Jayanti, Death, Family, Essay, Katha, Story, Speech, Quotes)
छत्रपति शिवाजी महाराज एक भारतीय शासक थे, जिन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा किया था. वे बहुत बहादुर, बुद्धिमानी, शौर्य और दयालु शासक थे. शिवाजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उन्होंने भारत देश के निर्माण के लिए बहुत से कार्य किये, वे एक महान देशभक्त भी थे, जो भारत माता के लिए अपना जीवन तक न्योछावर करने को तैयार थे. छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने जीवन में किस किस युद्ध किये और उनका कैसे उन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की इसकी जानकारी हम आपको यहाँ दे रहे हैं.
Table of Contents
छत्रपति शिवाजी महाराज जीवन परिचय (Chhatrapati Shivaji Maharaj Biography)
जीवन परिचय बिंदु | शिवाजी जीवन परिचय |
पूरा नाम | शिवाजी शहाजी राजे भोसले |
जन्म | 19 फ़रवरी 1630 |
जन्म स्थान | शिवनेरी दुर्ग, पुणे |
जाति | कुर्मी |
गोत्र | कश्यप |
माता-पिता | जीजाबाई, शहाजी राजे |
पत्नी | साईंबाई, सकबारबाई, पुतलाबाई, सोयाराबाई |
बेटे-बेटी | संभाजी भोसले या शम्भू जी राजे, राजाराम, दिपाबाई, सखुबाई, राजकुंवरबाई, रानुबाई, कमलाबाई, अंबिकाबाई |
मृत्यु | 3 अप्रैल 1680 |
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म, परिवार एवं आरंभिक जीवन (Birth, Family and Initial Life)
शिवाजी का जन्म पुणे जिले के जुन्नार गाँव के शिवनेरी किले में हुआ था. शिवाजी का नाम उनकी माता ने भगवान शिवाई के उपर रखा था, जिन्हें वो बहुत मानती थी. शिवाजी के पिता बीजापुर के जनरल थे, जो उस समय डेक्कन के सुल्तान के हाथों में था. शिवाजी अपनी माँ के बेहद करीब थे, उनकी माता बहुत धार्मिक प्रवत्ति की थी, यही प्रभाव शिवाजी पर भी पड़ा था. उन्होंने रामायण व महाभारत को बहुत ध्यान से पढ़ा था और उससे बहुत सारी बातें सीखी व अपने जीवन में उतारी थी. शिवाजी को हिंदुत्व का बहुत ज्ञान था, उन्होंने पुरे जीवन में हिन्दू धर्म को दिल से माना और हिन्दुओं के लिए बहुत से कार्य किये. शिवाजी के पिता ने दूसरी शादी कर ली और कर्नाटक चले गए, बेटे शिवा और पत्नी जिजाबाई को किले की देख रेख करने वाले दादोजी कोंडदेव के पास छोड़ गए थे.
छत्रपति शिवाजी महाराज की शिक्षा एवं विवाह, पत्नी (Shivaji Maharaj Education and Marriage, Wife)
शिवाजी को हिन्दू धर्म की शिक्षा कोंडदेव से भी मिली थी, साथ ही उनके कोंडाजी ने उन्हें सेना के बारे में, घुड़सवारी और राजनीती के बारे में भी बहुत सी बातें सिखाई थी.शिवाजी बचपन से ही बुद्धिमानी व तेज दिमाग के थे, उन्होंने बहुत अधिक शिक्षा तो ग्रहण नहीं की, लेकिन जितना भी उन्हें बताया सिखाया जाता था, वो वे बहुत मन लगाकर सीखते थे. 12 साल की उम्र में शिवाजी बंगलौर गए, जहाँ उन्होंने अपने भाई संभाजी और माँ के साथ शिक्षा ग्रहण की. यही उन्होंने 12 साल की उम्र में साईंबाई से विवाह किया.
छत्रपति शिवाजी महाराज की लडाइयां (Chhatrapati Shivaji Maharaj Fight)
शिवाजी का जब जन्म हुआ था, उस समय तक मुगलों का साम्राज्य भारत में फ़ैल चूका था, बाबर ने भारत में आकर मुग़ल एम्पायर खड़ा कर दिया था. शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ जंग छेड़ दी और कुछ ही समय में समस्त महाराष्ट्र में मराठा साम्राज्य पुनः खड़ा कर दिया. शिवाजी ने मराठियों के लिए बहुत से कार्य किये, यही वजह है, कि उन्हें समस्त महाराष्ट्र में भगवान की तरह पूजा जाता है.
15 साल की उम्र में शिवाजी ने पहला युद्ध लड़ा, उन्होंने तोरना किले में हमला कर उसे जीत लिया. इसके बाद उन्होंने कोंडाना और राजगढ़ किले में भी जीत का झंडा फहराया. शिवाजी के बढ़ते पॉवर को देख बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी को कैद कर लिया, शिवाजी व उनके भाई संभाजी ने कोंडाना के किले को वापस कर दिया, जिसके बाद उनके पिताजी को छोड़ दिया गया. अपनी रिहाई के बाद शाहजी अस्वस्थ रहने लगे और 1964-65 के आस पास उनकी मौत हो गई. इसके बाद शिवाजी ने पुरंदर और जवेली की हवेली में भी मराठा का धव्ज लहराया. बीजापुर के सुल्तान ने 1659 में शिवाजी के खिलाफ अफजल खान की एक बहुत बड़ी सेना भेज दी और हिदायत दी की शिवाजी को जिंदा या मरा हुआ लेकर आये. अफजल खान ने शिवाजी को मारने की कोशिश कूटनीति से की, लेकिन शिवाजी ने अपनी चतुराई से अफजल खान को ही मार डाला. शिवाजी की सेना ने बीजापुर के सुल्तान को प्रतापगढ़ में हराया था. यहाँ शिवाजी की सेना को बहुत से शस्त्र, हथियार मिले जिससे मराठा की सेना और ज्यादा ताकतवर हो गई.
बीजापुर के सुल्तान ने एक बार फिर बड़ी सेना भेजी, जिसे इस बार रुस्तम ज़मान ने नेतृत्व किया, लेकिन इस बार भी शिवाजी की सेना ने उन्हें कोल्हापुर में हरा दिया.
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छत्रपति शिवाजी महाराज व मुगलों की लड़ाई (Chhatrapati Shivaji Maharaj Fights)
शिवाजी जैसे जैसे आगे बढ़ते गए उनके दुश्मन भी बढ़ते गए, शिवाजी के सबसे बड़े दुश्मन थे मुग़ल. 1657 में शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी. उस समय मुग़ल एम्पायर औरंगजेब के हक में था, औरंगजेब ने शाइस्ता खान की सेना को शिवाजी के खिलाफ खड़ा कर दिया. उन्होंने पुना में अधिकार जमा लिया और सेना का विस्तार वही किया. एक रात शिवाजी ने अचानक पुना में हमला कर दिया, हजारों मुग़ल सेना के लोग मारे गए, लेकिन शाइस्ता खान भाग निकला. इसके बाद 1664 में शिवाजी ने सूरत में भी अपना झंडा फहराया.
पुरान्दर की संधि –
औरंगजेब ने हार नहीं मानी और इस बार उसने अम्बर के राजा जय सिंह और दिलीर सिंह को शिवाजी के खिलाफ खड़ा किया. जय सिंह ने उन सभी किलो को जीत लेता है, जिनको शिवाजी ने जीते थे और पुरन्दरपुर में शिवाजी को हरा दिया. इस हार के बाद शिवाजी को मुगलों के साथ समझोता करना पड़ा. शिवाजी ने 23 किलों के बदले मुगलों का साथ दिया और बीजापुर के खिलाफ मुग़ल के साथ खड़ा रहा.
शिवाजी महाराज का छुपना –
औरंगजेब ने समझोते के बावजूद शिवाजी से अच्छा व्यव्हार नहीं किया, उसने शिवाजी और उसके बेटे को जेल में बंद कर दिया, लेकिन शिवाजी अपने बेटे के साथ आगरा के किले से भाग निकले. अपने घर पहुँचने के बाद शिवाजी ने नयी ताकत के साथ मुगलों के खिलाफ जंग छेड़ दी. इसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी को राजा मान लिया. 1674 में शिवाजी महाराष्ट्र के एक अकेले शासक बन गए. उन्होंने हिन्दू रिवाजों के अनुसार शासन किया.
छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक (Chhatrapati Shivaji Maharaj Coronation)
महाराष्ट्र में हिन्दू राज्य की स्थापना शिवाजी ने 1674 में की, जिसके बाद उन्होंने अपना राज्याभिषेक कराया. शिवाजी कुर्मी जाति के थे, जिन्हें उस समय शुद्र ही माना जाता था, इस वजह से सभी ब्राह्मण ने उनका विरोध किया और राज्याभिषेक करने से मना कर दिया. शिवाजी ने बनारस के भी ब्राह्मणों को न्योता भेजा, लेकिन वे भी नहीं माने, तब शिवाजी ने उन्हें घूस देकर मनाया और फिर उनका राज्याभिषेक हो पाया. यही पर उन्हें छत्रपति की उपाधि से सम्मानित किया गया. इसके 12 दिन के बाद उनकी माता जिजाभाई का देहांत हो गया, जिससे शिवाजी ने शोक मनाया और कुछ समय बाद फिर से अपना राज्याभिषेक कराया. इसमें दूर दूर से राजा पंडितों को बुलाया गया. जिसमें बहुत खर्चा हुआ. शिवाजी ने इसके बाद अपने नाम का सिक्का भी चलाया.
सभी धर्मो का आदर :
शिवाजी धार्मिक विचारधाराओं मान्यताओं के घनी थे. अपने धर्म की उपासना वो जिस तरह से करते थे, उसी तरह से वो सभी धर्मो का आदर भी करते थे, जिसका उदहारण उनके मन में समर्थ रामदास के लिए जो भावना थी, उससे उजागर होता हैं. उन्होंने रामदास जी को पराली का किला दे दिया था, जिसे बाद में सज्जनगड के नाम से जाना गया . स्वामी राम दास एवम शिवाजी महाराज के संबंधो का बखान कई कविताओं के शब्दों में मिलता हैं . धर्म की रक्षा की विचारधारा से शिवाजी ने धर्म परिवर्तन का कड़ा विरोध किया .
शिवाजी ने अपना राष्ट्रीय ध्वज नारंगी रखा था, जो हिंदुत्व का प्रतीक हैं. इसके पीछे एक कथा है, शिवाजी रामदास जी से बहुत प्रेम करते थे, जिनसे शिवाजी ने बहुत सी शिक्षा ग्रहण की थी. एक बार उनके ही साम्राज्य में रामदास जी भीख मांग रहे थे, तभी उन्हें शिवाजी ने देखा और वे इससे बहुत दुखी हुए, वे उन्हें अपने महल में ले गए और उनके चरणों में गिर उनसे आग्रह करने लगे, कि वे भीख ना मांगे, बल्कि ये सारा साम्राज्य ले लें. स्वामी रामदास जी शिवाजी की भक्ति देख बहुत खुश हुए, लेकिन वे सांसारिक जीवन से दूर रहना चाहते थे, जिससे उन्होंने साम्राज्य का हिस्सा बनने से तो इंकार कर दिया, लेकिन शिवाजी को कहा, कि वे अच्छे से अपने साम्राज्य को संचालित करें और उन्हें अपने वस्त्र का एक टुकड़ा फाड़ कर दिया और बोला इसे अपना राष्ट्रीय ध्वज बनाओ, ये सदेव मेरी याद तुम्हे दिलाएगा और मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा.
छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना (Chhatrapati Shivaji Maharaj Army)
शिवाजी के पास एक बहुत बड़ी विशाल सेना थी, शिवाजी अपनी सेना का ध्यान एक पिता की तरह रखते थे. शिवाजी सक्षम लोगों को ही अपनी सेना में भरती करते थे, उनके पास इतनी समझ थी, कि वे विशाल सेना को अच्छे से चला पायें. उन्होंने पूरी सेना को बहुत अच्छे से ट्रेनिंग दी थी, शिवाजी के एक इशारे पर वे सब समझ जाते थे. उस समय तरह तरह के टैक्स लिए जाते थे, लेकिन शिवाजी बहुत दयालु राजा थे, वे जबरजस्ती किसी से टैक्स नहीं लेते थे. उन्होंने बच्चों, ब्राह्मणों व औरतों के लिए बहुत कार्य किये. बहुत सी प्रथाओं को बंद किया. उस समय मुग़ल हिंदुओ पर बहुत अत्याचार करते थे, जबरजस्ती इस्लाम धर्म अपनाने को बोलते थे, ऐसे समय में शिवाजी मसीहा बनकर आये थे. शिवाजी ने एक मजबूत नेवी की स्थापना की थी, जो समुद्र के अंदर भी तैनात होती और दुश्मनों से रक्षा करती थी, उस समय अंग्रेज, मुग़ल दोनों ही शिवाजी के किलों में बुरी नजर डाले बैठे थे, इसलिए उन्हें इंडियन नेवी का पिता कहा जाता है.
छत्रपति शिवाजी महाराज की म्रत्यु कैसे हुई (Chhatrapati Shivaji Maharaj Death)
शिवाजी बहुत कम उम्र में दुनिया से चल बसे थे, राज्य की चिंता को लेकर उनके मन में काफी असमंजस था, जिस कारण शिवाजी की तबियत ख़राब रहने लगी और लगातार 3 हफ़्तों तक वे तेज बुखार में रहे, जिसके बाद 3 अप्रैल 1680 में उनका देहांत हो गया. मात्र 50 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई. उनके मरने के बाद भी उनके वफादारों ने उनके साम्राज्य को संभाले रखा और मुगलों अंग्रेजों से उनकी लड़ाई जारी रही.
शिवाजी एक महान हिन्दू रक्षक थे. शिवाजी ने एक कूटनीति बनाई थी, जिसके अन्तर्गत किसी भी साम्राज्य में अचानक बिना किसी पूर्व सुचना के आक्रमण किया जा सकता था, जिसके बाद वहां के शासक को अपनी गद्दी छोड़नी होती थी. इस नीति को गनिमी कावा कहा जाता था. इसके लिए शिवाजी को हमेशा याद किया जाता है. शिवाजी ने हिन्दू समाज को नया रूप दिया, अगर वे ना होते तो आज हमारा देश हिन्दू देश ना होता मुग़ल पूरी तरह से हमारे उपर शासन करते. यही वजह है शिवाजी को मराठा में भगवान मानते है.
छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती 2024 में कब है (Chhatrapati Shivaji Maharaj 2024 Jayanti)
शिवाजी महाराज की याद में हर साल की तरह इस साल भी शिवाजी महाराज की जयंती 19 फ़रवरी को मनाई जाएगी.
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FAQ
Ans : एक महान बहादुर एवं प्रगतिशील शासकों में से एक जिन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी.
Ans : 19 फरवरी
Ans : 19 फरवरी, 1630 में
Ans : 3 अप्रैल, 1680 को
Ans : बीमारी के चलते 50 साल की उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई.
Ans : कुर्मी
Ans : कश्यप
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