अन्तराष्ट्रीय विश्व भारतीय राष्ट्रीय डाक दिवस- National Postal Day or World Postal

अन्तराष्ट्रीय विश्व भारतीय राष्ट्रीय डाक दिवस  (National Postal Day or World Postal or Post- office Day hindi)

डाक सेवा एक मात्र ऐसी सेवा थी, जिसके जरिये व्यक्ति, व्यक्ति से जुड़ा रहता हैं.  यह महत्वपूर्ण सेवाओं में से एक मानी जाती थी. चिट्ठियों के जरिये नाते रिश्तेदार एक दुसरे के सुख दुःख में शामिल होते थे. इतनी दुरी होने के बावजूद भी सबमे अपना पन होता और आज के समय में हर एक पल की खबर होने पर भी वो चिट्ठियों के समय का प्यार और अपनापन कही खो गया हैं. ऐसे में राष्ट्रिय डाक दिवस हमें उन पुराने दिनों की याद दिलाता हैं.

 

World Postal or Post office Day

भारतीय डाक सेवा का इतिहास (History Of Postal Days):

भारत में इस सुविधा को भारतीय डाक सेवा कहा जाता है, इस सेवा के जरिये ख़त, कार्ड एवम अन्य जरुरी दस्तावेज भेजे जाते हैं. इस कार्यालय को आमतौर पर पोस्ट ऑफिस कहा जाता हैं. इसे चिट्ठी एवम दस्तावेज के आवंटन के अलावा बैंक के कुछ कार्यों की भी मान्यता प्राप्त है, जैसे पोस्ट ऑफिस में भी पैसे जमा किये जाते है, कई तरह की योजनायें पोस्ट ऑफिस में चलाई जाती हैं.

इस भारतीय डाक सेवा की स्थापना 1766 में लार्ड क्लाइव ने की थी. भारत में पहला पोस्ट ऑफिस कोलकाता में 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने शुरू किया था. 1852 में स्टाम्प टिकिट शुरू किये गए. इस प्रकार भारत में डाक सेवा को 166 वर्ष से अधिक हो गया हैं. भारतीय डाक सेवा बड़ी डाक सेवाओं में से एक मानी जाती हैं.

अन्तराष्ट्रीय एवम राष्ट्रीय डाक दिवस कब मनाया जाता हैं? (International / National Postal Day 2023 Date)

भारतीय डाक सेवा दिवस हर साल 10 अक्टूबर को मनाया जाता है, एवम अन्तराष्ट्रीय डाक सेवा दिवस उसके एक दिन पहले 9 अक्टूबर को मनाया जाता हैं.

भारतीय डाक सेवा दिवस10 अक्टूबर
अन्तराष्ट्रीय डाक सेवा दिवस9 अक्टूबर (1969 में शुरू हुआ)
भारत में पहला पोस्ट ऑफिस1774 (कोलकत्ता)
भारतीय सीमा के बाहर पहला डाकघरदक्षिण गंगोत्री, अंटार्कटिका (1983)
स्पीड पोस्ट कब शुरू हुआ1986
मनी आर्डर सिस्टम कब शुरू हुआ1880
  • डाक सेवा पर मेरी भावना

आज के आधुनिक समय में डाक और डाकिया के महत्व को कौन जानता हैं. आज देश हो या विदेश संपर्क करने में मात्र कुछ क्षण लगते हैं. वही कुछ सालो अथवा दशको समय पूर्व यह संपर्क कई दिनों की मश्कत के बाद होता हैं. चिट्ठी लिखी जाती थी. उस पर टिकिट लगाया जाता था, फिर कही लाल पोस्ट का डिब्बा देख उसमे चिट्ठी डाली जाती थी. वहीँ दूसरी तरफ जब भी डाकिया आता, सभी आशा भरी निगाहों से उसे देखने लगते और सोचते कि काश आज मेरे किसी अपने ने मुझे ख़त लिखा हो, आज इस डाकिया के पास मेरे लिए कोई सन्देश हो.

उन दिनों डाकिया किसी फ़रिश्ते से कम नहीं था. ससुराल से बिदा हुई लड़की केवल एक अंतर्देशी के जरिये अपने माँ बाप भाई बहन से जुड़ी रहती थी. बरसो से घर से दूर हुए फौजी भाई भी इस एक पोस्ट कार्ड के इंतजार में टकटकी लगाये, उस रास्ते को निहारते रहते थे, जहाँ से पोस्टमेन अपनी साइकिल पर सवार होकर पोटली बाबा की तरफ चिट्ठियों से भरी एक पोटली लाता था और एक एक का नाम लेकर उसे उसका ख़त देता था.

आज के मोबाइल के दौर में उस वक्त की ख़ुशी का अंदाजा भी लगाना मुश्किल हैं. ख़त एक ऐसा जरिया होते थे, जिनके सहारे व्यक्ति बरसो अपनों की याद में गुजारता था.

मैं खुद इस दौर के आखरी दिनों को देख चुकी हूँ, आज भी कुछ खास ख़त मेरे डिब्बे में बंद हैं जिन्हें पढ़कर मेरे बचपन की वो यादें मेरी आँखों के सामने आ खड़ी होती हैं. जब मेरी उम्र शायद 6 या 7 साल की होगी, जब मैं शब्दों को ठीक से पढ़ना भी नहीं सीखी थी, तब मेरी बुआ की बेटी ने मुझे एक ख़त लिखा था, जिसमे अनाराम थे. मुझे आज भी याद हैं मैं ख़ुशी से फूली नहीं समां रही थी, मुझे ख़ुशी इस बात की थी कि अब तक माँ के लिए ख़त आते थे, आज पहली बार मेरे लिए ख़त आया हैं. वहीँ कुछ सालो बाद मेरे स्कूल के दो टीचर स्कूल से चले गए, पर वे दोनों मेरे दिल के बहुत करीब थे और मैं भी उनकी चहेती. स्कूल से जाने के बाद कई सालो तक मैं उनसे ख़त के जरिये बात करती थी. छः से दस पन्नो का लेटर लिख कर उन्हें पोस्ट करती थी. वो हमेशा मुझसे कहती थी कि तू लिखती बहुत अच्छा हैं. किस्से ऐसे लिख कर भेजती हैं जैसे मेरे सामने ही घट रहे हो. उस वक्त कभी सोचा भी न था कि वो ख़त लिखने की मेरी आदत एक दिन मुझे ब्लॉगर बना देगी, खैर यहाँ बात राष्ट्रिय एवम अन्तराष्ट्रीय डाक दिवस की हो रही हैं.

यह दिवस पोस्टऑफिस केन्द्रों पर मनाई जाती हैं इस दिन कार्यालय को सजाया जाता हैं. मिष्ठान वितरित किया जाता हैं. आमतौर पर इस दिन से नयी योजनाओ का आनावरण किया जाता हैं. पोस्ट ऑफिस में कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं.

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