अधिक मास क्या होता हैं 2026 (महत्व, पूजा विधि, वर्जित कार्य, तारीख) (पुरुषोत्तम मास) (Adhik Maas ka mahina in hindi) (Katha, Dates, Daan, Year list,
आज के वक्त में मॉडर्न बिज़ी लाइफ का नाम देकर लोग संस्कृति से अलग होते जा रहे हैं. उन्हें अपनी संस्कृति का कोई ज्ञान नहीं रहता और इसमें वो अपनी मॉडर्निटी समझते हैं. पर अपने आधार को भूलना समझदारी नहीं बल्कि अपनी नीव को खोखला करना हैं.
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क्या हैं अधिक मास (Importance Of Adhik Maas)
हिन्दू कैलेंडर के 12 महीनो में सभी दिनों को गिनने के बाद यह 354 ही होते हैं, जबकि एक वर्ष 365 दिनों का होता क्यूंकि इतने वक्त में पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती हैं इस प्रकार हिन्दू कैलेंडर में 11 दिन कम होते हैं, इसलिए इन दिनों को जोड़कर प्रति तीन वर्षो में अधिक मास आता हैं, जिसे मल मास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं.
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक तीन वर्षो के बाद एक अधिक महिना आता है, जिसे अधिक मास (Adhik Maas) या मल मास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता हैं. हिन्दू संस्कृति में इसका विशेष महत्व होता हैं. महिलायें इस पुरे महीने व्रत, दान, पूजा पाठ एवम सूर्योदय से पूर्व स्नान करती हैं.अधिक मास में दान का विशेष महत्व हैं कहते हैं इससे सभी प्रकार के दुःख कम होते हैं.
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जानिये अधिक मास का नाम मल मास से पुरुषोत्तम मास कैसे पड़ा ?
दरअसल मल मास का कोई स्वामी नहीं था, जिसके कारण उसका मजाक बनाया जाता था ऐसे में वो बहुत दुखी था उसने अपनी व्यथा नारद जी से कही. तब नारद जी उसे भगवान कृष्ण के समीप ले गये. वहाँ मल मास ने अपनी व्यथा कही. तब श्री कृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया कि इस मल मास का महत्व सभी मास से अधिक होगा. लोग इस पुरे मास में दान पूण्य के काम करेंगे और इसे मेरे नाम पर पुरुषोत्तम मास कहा जायेगा. इस तरह मल मास को स्वामी मिले और उसका नाम पुरुषोत्तम मास पड़ा.
अधिक मास में परमा एवम पद्मिनी एकादशी व्रत का महत्व :
हिन्दू संस्कृति में ग्यारस अथवा एकादशी का बहुत महत्व होता हैं ऐसे हिन्दू कैलेंडर में प्रति वर्ष 24 ग्यारस होती हैं लेकिन अधिक मास (Adhik Maas) के कारण दो ग्यारस बड़ जाती हैं जिन्हें परमा एवम पद्मिनी कहते हैं.यह दोनों ग्यारस का बहुत महत्व होता हैं इसे निर्जला रख रात्रि जागरण किया जाता हैं. कहते इस दिन पूजा, स्नान एवम कथा बाचन से ही बहुत पुण्य मिलता हैं. दोनों ग्यारासों के व्रत से सभी मनोकामना पूरी होती हैं.संतान प्राप्ति, रोगों से मुक्ति, धन धान्य सभी सुख मिलते हैं.कहते हैं इन एकादशी के व्रत से मनुष्य को मोक्ष मिलता हैं जो कि बहुत कठिन बात है.
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अधिक मास (Adhik Maas) की मान्यतायें (वर्जित कार्य) :
- अधिक मास (Adhik Maas) में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता जैसे शादी , नाम करण अथवा मुंडन आदि क्यूंकि इस वक्त ग्रहों महा दशा बहुत ज्यादा प्रभावशाली हो जाती हैं.
- अगर किसी को कोई गृह दशा ख़राब हैं तो इस अधिक मास (Adhik Maas) में उसकी पूजा करना सबसे योग्य समझा जाता हैं.
- अधिक मास (Adhik Maas) में दान का विशेष महत्व हैं अतः सभी दान, स्नान एवम पूजा पाठ करते हैं.
- हिन्दू मान्यतानुसार – एक हिरण्यकश्यप नामक राजा था जिसने तपस्या कर ब्रह्म देव से आशीर्वाद लिया था कि उसे ना कोई नर मार सके, ना जानवर. ना दिन हो, ना रात. ना ही कोई मास. ना आकाश हो, न धरती. ऐसे आशीर्वाद के कारण हिरण्यकश्यप को अभिमान हो जाता हैं और वो खुद को भगवान् से भी महान समझने लगता हैं. सभी पर अत्याचार करता हैं. तब उसका वध नरसिम्हा (आधा नर, आधा जानवर ) द्वारा अधिक मास (Adhik Maas) में दोपहर के समय डेलहजी पर किया जाता हैं.
कोकिला व्रत क्या हैं (Importance Of Kokila Vrat):
जब अधिक मास (Adhik Maas) आषाढ़ मास में आता है, प्रत्येक 19 वर्ष बाद ऐसा होता हैं उसे कोकिला अधिक मास (Adhik Maas) कहते हैं. हिन्दू धर्म में कोकिला व्रत का बहुत महत्व होता हैं. विशेष कर कुमारी कन्या अच्छे पति के लिए कोकिला व्रत करती हैं.
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क्या हैं कोकिला व्रत की कहानी (Kokila vrat katha story in hindi )
भगवान शिव का विवाह देवो के राजा दक्ष की बेटी सति से होता हैं. यह विवाह सति अपने पिता की अनुमति के खिलाफ करती हैं क्यूंकि दक्ष को भगवान शिव पसंद नहीं थे. उनका रहन सहन और रूप से वो घृणा करते थे. ऐसे में जब सति शिव से विवाह कर लेती हैं तो दक्ष उससे रुष्ट हो जाते हैं. और संबंध तोड़ देते हैं.
एक बार दक्ष बहुत बड़ा यज्ञ करते हैं जिसमे सभी देवी, देवता एवम भगवान् को आमंत्रित किया जाता हैं लेकिन भगवान शिव को नहीं. यह ज्ञात होने पर भगवान शिव सति को यज्ञ में बिन बुलाये ना जाने को कहते हैं लेकिन सति उस यज्ञ में शामिल हो जाती हैं. जिसमे भगवान् शिव को अपमानित किया जाता हैं और क्रोध में आकार सति यज्ञ में कूदकर अपनी जान दे देती हैं. यह जानने के बाद भगवान शिव को क्रोध आता हैं और सति ने उनका कथन नहीं माना, इससे नाराज होकर उन्हें कोकिला / कोयल बनने का श्राप देते हैं. इस तरह कोकिला रूप में माता सति 10 हजार वर्षों तक भटकती रहती हैं. इसके बाद पार्वती का रूप लेकर वो यह व्रत करती हैं फिर उनका विवाह भगवान् शिव से होता हैं. इस प्रकार कोकिला व्रत का महत्व हैं.
इस तरह अधिक मास (Adhik Maas) में कोकिला व्रत को और भी अधिक पावन बताया गया हैं.
कोकिला व्रत पूजा विधि (Kokila Vrat pooja Vidhi):
कोकिला व्रत में सूर्योदय से पूर्व स्नान का सबसे ज्यादा महत्व होता हैं.
- कोकिला व्रत जब आता हैं जब अधिक मास के कारण दो आषाढ़ माह आते हैं तब श्रावण में कोकिला स्नान किया जाता हैं.
- इसके लिए कोकिला अर्थात नकली कोयल (चाँदी अथवा लाख की बनी होती हैं ) को पीपल के पेड़ में रखकर सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान करके विधि विधान से पूजा की जाती हैं.
- आंवले के पेड़ का भी बहुत महत्व होता हैं उसकी भी पूजा की जाती हैं.
- विवाहित नारियाँ पति की मंगल कामना के लिए कोकिला व्रत एवम स्नानकरती हैं.
- अविवाहित अच्छे वर की कामना हेतु कोकिला स्नान करती हैं.
- इसे सुन्दरता पाने के लिए भी किया जाता हैं. इसमें शुरू के आठ दिन आँवले का लेप लगाकर स्नान किया जाता हैं. फिर जड़ी बूटी एवम औषधियों कूट, कच्ची और सूखी हल्दी, मुरा, शिलाजित, चंदन, वच, चम्पक एवं नागरमोथा से स्नान करते हैं.
- इसके बाद तिल, आंवला के साथ स्नान करते हैं.
- आखरी दिन उस कोकिला को ब्राह्मणों अथवा मान्य को दान दे दिया जाता हैं.
कैसे मनाते हैं अधिक मास (Adhik Maas) :
महिलायें सूर्य उदय के पहले उठती हैं स्नान करके पूजा करती हैं. अगर कोकिला व्रत हैं तो वह कोकिला का पूजन करती हैं और पूरा महिना एक वक्त का उपवास करती हैं. संध्या के समय कोकिला कि आवाज सुनकर व्रत तोड़ती हैं. इसके बाद पूर्णिमा को दान देकर व्रत पूरा करती हैं. सभी अपनी हेसियत के हिसाब से दान करती हैं.अधिक मास (Adhik Maas) में भागवत कथा पढ़ने का भी महत्व हैं. साथ ही पवित्र नदियों का स्नान भी किया जाता हैं.
उन्नीस साल में जब भी साल में दो आषाढ़ आते है, तब कोकिला व्रत आता है|
अधिक मास व कोकिला व्रत सन (Adhik Mass year list) –
अधिक मास सन | कोकिला व्रत सन |
2012 | 1996 |
2015 | 2015 |
2018 | 2023 |
2020 | 2053 |
2023 | 2072 |
2026 | – |
साल 2026 में अधिक मास कब है? (Adhik Maas 2026 Date)
इस साल ज्येष्ठ के महीने में अधिक मास है.
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FAQ –
Ans: दान, गौ सेवा, गुरु सेवा, पूजा, पुराण का आयोजन.
Ans: कोई शुभ कार्य नहीं होते, मुंडन, शादी विवाह, चौक, गृह प्रदेश के काम वर्जित है. साथ ही तालाब कुआं भी नहीं खुदवाया जाता है.
Ans: ज्येष्ठ महीने में
Ans: हर 3 साल में
Ans : पुरुषोत्तम महिना
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