तकदीर का खेल कहानी | Taqdeer ka khel Moral story in hindi

Taqdeer ka khel Moral story in hindi आपने सभी ने ये कहावत तो सुनी होगी कि तकदीर का लिखा कोई नहीं बदल सकता. इसका खेल सिर्फ तकदीर लिखने वाले को ही पता होता है और तकदीर हमेशा अच्छे कर्मों से बनती है. ऐसी ही डॉ भाइयों की कहानी यहाँ बतायी जा रही है जिसमे दोनों की तकदीर ने ऐसा खेल खेला की दोनों की दुनिया ही उलट गई.

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तकदीर का खेल कहानी (Taqdeer ka khel story in hindi)

बात बहुत पुरानी है. गुजरात के सूरत शहर में मनसुख लाल नाम के एक व्यापारी थे. इनका कीमती रत्न का कारोबार था. इनका कारोबार दुनिया के कई देशों में फैला हुआ था. पूरे सूरत शहर में इनका मान और सम्मान था. मनसुख लाल के दो बेटे थे जिनका नाम रामलाल और श्यामलाल था. रामलाल को दौलत और रुतबे का बहुत घमंड था जबकि श्यामलाल एक शरीफ और सुलझा हुआ इंसान था. घमंड के साथ-साथ रामलाल में इर्ष्या और बईमानी जैसे अवगुण भी थे. समय के साथ-साथ मनसुख लाल की उम्र बढ़ती जा रही थी. ऐसे में उनके दोनों बेटों ने कारोबार में पिता का अधिक से अधिक हाथ बटाना शुरू कर दिया था. दुनिया के सबसे महंगे जेमस्टोन यहाँ पढ़ें.

कुछ समय के पश्चात मनसुख लाल चल बसे और कारोबार का पूरा भार रामलाल और श्यामलाल के कंधों पर आ गया. बड़ा भाई होने के नाते रामलाल ने व्यापारिक फैसलों में अपनी मर्जी की चलानी शुरू कर दी. रामलाल बईमानी और मक्कारी भरे फैसले लेने लगा. असली रत्न के नाम पर वह नकली रत्न का व्यापार करने लगा, जिससे उसका मुनाफा बढ़ने लगा. इस मुनाफे से उसका बाकी बचा चरित्र भी काला हो गया. दौलत के घमंड में वह परिवार में उन्मादी जैसा व्यवहार करने लगा. दूसरी तरफ शरीफ और सुलझे हुए श्यामलाल को शुरू-शुरू में रामलाल की बईमानी का इल्म तो नहीं हुआ, परन्तु जब उसने उसके व्यवहार में परिवर्तन देखा तो पूरे माजरे को समझने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी. घमंडी का सिर नीचा कहानी यहाँ पढ़ें.

रामलाल की करतूतों से श्यामलाल को बड़ा दुःख हुआ. उसने रामलाल को समझाने और सही रास्ते पर लाने की कोशिश भी की. परन्तु वह नाकाम रहा. उलटे रामलाल श्यामलाल से खफा हो गया और व्यापार में बंटबारे का बहाना ढूंढने लगा. बंटबारे में भी उसने बईमानी की साजिश रची. घर में कलह का माहौल पैदा किया. अंततः रामलाल अपनी साजिश में सफल रहा और श्यामलाल के हिस्से के व्यापार पर भी वह कब्ज़ा कर बैठा. रामलाल के व्यव्हार से दुखी होकर श्यामलाल ने शहर में दूसरी जगह अपना ठिकाना बनाया और रत्न के अपने व्यापार को नए सिरे से शुरू किया. ईमानदारी की नींव पर शरू हुआ श्यामलाल का व्यापार जल्दी ही चल निकला. ईमानदारी सर्वोच्च नीति है कहानी यहाँ पढ़ें.

एक तरफ जहाँ श्यामलाल की ख्याति देश और विदेश में बढ़ने लगी वहीँ दूसरी तरफ रामलाल की करतूतों की पोल खुलने लगी थी. नकली रत्न के व्यापार के कारण रत्न बाज़ार में रामलाल की साख को जोरदार धक्का लगा और उसके व्यापार का दायरा सिमटने लगा. अंततः नौबत यहाँ तक आ गई कि बाहर क्या, अपने शहर का भी कोई व्यापारी रामलाल का नाम लेने से भी तौबा करने लगा. अब तो नौबत यहाँ तक आ गई कि रामलाल को धन के अभाव में अपना घर, दूकान, सामान तक बेचना पड़ रहा था. जल्दी ही रामलाल के हाथ से सबकुछ निकल गया और वह परिवार सहित सड़क पर आ गया. अब रामलाल को अपने किए पर पछतावा हो रहा था. परन्तु उसकी तक़दीर ने जो खेल खेल दिया था उससे आसानी से पीछे आना उसके लिए संभव नहीं था. दूसरी तरफ श्यामलाल की तक़दीर का खेल था जिसकी बदौलत वह रंक से राजा बन गया था.

जब रामलाल की बदहाली की खबर श्यामलाल को लगी तो उसे बड़ा दुःख हुआ. पुरानी बातों को भूलकर वह भागा-भागा अपने बड़े भाई रामलाल के पास पहुंचा और रामलाल के लाख मना करने के बाद भी उसे परिवार सहित अपने पास ले आया. यह भी तक़दीर का ही खेल था कि जिस भाई के साथ रामलाल ने बदसलूकी कर उसे सड़क पर पहुंचा दिया था, वही भाई आज उसे सड़क से उठाकर अपने घर में ले आया था.

कहानी से शिक्षा (Moral of the story)

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि तक़दीर कब किसके साथ क्या खेल खेल दे इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता. हाँ, इतना जरूर है कि आपके कर्म ही आपकी तक़दीर लिखते हैं. जिस तरह रामलाल और श्यामलाल के कर्मों के आधार पर तक़दीर ने उसके साथ खेल खेला था. इसी तरह अच्छे कर्म करते रहना चाहिए क्या पता कल तक़दीर आपके साथ क्या खेल खेल जाये. इसलिए कहते तकदीर का खेल निराला है.

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