आर. डी. बर्मन की जीवनी, जीवन परिचय, जन्म, मृत्यु, पुण्यतिथि, जाति, धर्म, सुपरहिट गाने लिस्ट, हिट सॉंग (R D Burman Biography in Hindi) (Songs List, Age, Birth Date, Wife Name, Family, Net Worth, Son, Death Date, Father, Caste, Religion)
हिंदी फिल्म संगीत में आर. डी. बर्मन एक ऐसा नाम है जिन्होंने हिंदुस्तानी संगीत के साथ पाश्चात्य संगीत का एक ऐसा कॉकटेल तैयार किया था, जिसपर सत्तर के दशक में पूरा देश झुमने को मजबूर हो गया था. हिंदी फिल्म संगीत में उनका यह एक प्रयोग ही था जिसके तहत उन्होंने न केवल संगीत की धुनों में क्रांतिकारी परिवर्तन किया बल्कि संगीत के बोल और स्वर को भी नए जमाने के साथ ढाल दिया था. वे संगीत में प्रयोग के हिमायती थे. यही वजह है कि अपने जीवनकाल में उन्होंने न केवल हिंदी सिनेमा को बल्कि बंगाली, तमिल, तेलगु और मराठी सिनेमा को भी हर प्रकार के सुरों से संवारा है. संगीत के क्षेत्र में अद्भुत योगदान के कारण ही इन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में एक माना जाता है.
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आर. डी. बर्मन की जीवनी (R D Burman Biography in Hindi)
नाम | राहुल देव बर्मन |
जन्म | 27 जून 1939 |
जन्म स्थान | कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी |
मृत्यृ तिथि | 4 जनवरी 1994 |
उम्र | 54 साल |
मृत्यृ कारण | दिल का दौरा पड़ना |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शैक्षिक योग्यता | पता नहीं |
व्यवसाय | संगीत निर्देशक, गायक, संगीतकार |
डेब्यू | फिल्म (एक संगीतकार के रूप में) : फंटूश (1956) (गीत – ए मेरी टोपी पलट के आ)फिल्म (एक संगीत निर्देशक के रूप में) : राज़ (1959) |
पुरस्कार | • फिल्म “1942 : ए लव स्टोरी” (1955) केलिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के रूप मेंफिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित कियागया।• फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ (1983) के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के रूप में फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।• फिल्म मासूम (1984) के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के रूप में फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी | रीटा पटेल, आशा भोसले |
बेटा | हेमंत भोसले, आनंद भोसले, बेटी- वर्षा भोसले |
पिता का नाम | सचिन देव बर्मन |
माता का नाम | मीरा देव बर्मन |
पसंदीदा खाना | बिरयानी, मछली कलिया, मटन |
पसंदीदा गायक | किशोर कुमार, मोहम्मद रफी |
आर. डी. बर्मन का प्रारंभिक जीवन (Early Life of R. D. Burman)
राहुल देव बर्मन का जन्म कोलकाता में 27 जून 1939 को हुआ था. इनके पिता सचिन देव बर्मन हिंदी सिनेमा के एक बड़े संगीतकार थे. घर में संगीत का पारंपरिक माहौल होने कि वजह से बचपन से ही राहुल ने संगीत की बारीकियों को सीखना शुरू कर दिया था. बचपन में उनके साथ घटा एक वाकया बहुत ही दिलचस्प है जिससे उनका नाम ‘पंचम’ पड़ गया था. कहा जाता है कि बचपन में जब वह रोते थे तो उनके मुंह से संगीत का पांचवां स्वर यानि ‘पा’ निकलता था, इसलिए घरवालों ने उनका नाम ‘पंचम’ रख दिया. परन्तु एक दूसरी कहानी के अनुसार राहुल के पंचम स्वर में रोने की पहचान प्रसिद्ध अभिनेता अशोक कुमार ने की थी और उन्होंने ही राहुल को ‘पंचम’ नाम दिया था. हालाँकि कहा यह भी जाता है कि बचपन में राहुल की नानी ने उनका उपनाम ‘टुब्लू’ रखा था. बहरहाल उनके ‘पंचम’ नाम पड़ने की कहानी जो भी रही हो, परन्तु वह आगे जाकर बॉलीवुड में भी ‘पंचम’ यानि ‘पंचम दा’ के नाम से ही प्रसिद्ध हुए.
प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए राहुल को कोलकाता के ‘सेंट जेवियर्स स्कूल’ में दाखिल कराया गया. फिर माध्यमिक शिक्षा के लिए वह कोलकाता के ही सरकारी स्कूल ‘बालिगुंगे हाई स्कूल’ में दाखिल हुए. इसी दौरान सिर्फ नौ साल की उम्र में राहुल ने अपना पहला गाना ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ…’ को संगीत के सुरों में ढाला था. बाद में वर्ष 1956 में उनके पिता सचिन देव बर्मन ने इस गाने को फिल्म ‘फंटुश’ में उपयोग किया था. केवल इतना ही नहीं, इस छोटी उम्र में ही उन्होंने एक ऐसी धुन हिंदी सिनेमा को दी थी जिसे लोग आज भी बरबस गुनगुना उठते हैं और वह धुन थी ‘सर जो तेरा चकराए..’. इस धुन को भी सचिन देव बर्मन ने अगले ही वर्ष 1957 में प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में उपयोग किया था. बड़े होने पर मुंबई में आर. डी. बर्मन ने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद और समता प्रसाद से तबला बजाने का प्रशिक्षण लिया और पिता का सहायक बनकर संगीत की दुनिया में कदम बढ़ाने लगे. हालाँकि आर. डी. बर्मन तत्कालीन संगीतकार सलिल चौधरी को अपना गुरु मानते थे.
आर. डी. बर्मन का पेशेवर जीवन (Professional Life of R. D. Burman)
आर. डी. बर्मन ने अपने करिएर की शुरुआत अपने पिता सचिन देव बर्मन के सहायक के तौर पर की थी. इस दौरान उन्होंने 1958 में चलती का नाम गाड़ी और सोलहवां साल, 1959 में कागज़ का फूल, 1963 में तेरे घर के सामने और बंदिनी, 1964 में जिद्दी, 1965 में गाइड और तीन देवियाँ जैसी सफल फिल्मों में सहायक संगीतकार की भूमिका निभाई. उल्लेखनीय है कि फिल्म सोलहवां साल के गीत ‘है अपना दिल तो आवारा…’ के संगीत में आर. डी. बर्मन ने माउथ ऑर्गन बजाया था और यह गीत केवल उस समय ही नहीं, आज भी हम सबके जुबान पर तैरता रहता है.
स्वतंत्र संगीत निर्देशक के तौर पर आर. डी. बर्मन को पहला ब्रेक वर्ष 1959 में ‘राज’ नामक फिल्म में मिला था परन्तु बदकिस्मती से यह फिल्म निर्माण के बीच में ही बंद हो गया जबकि फिल्म के कलाकारों में गुरुदत्त और वहीदा रहमान जैसे नाम थे और फिल्म के गीतों के बोल शैलेन्द्र ने लिखे थे. इसके दो साल बाद वर्ष 1961 में प्रसिद्ध हास्य अभिनेता महमूद ने अपनी फिल्म ‘छोटे नवाब’ के लिए आर. डी. बर्मन को साइन किया और बतौर स्वतंत्र संगीत निर्देशक यह उनकी पहली फिल्म बनी. कहा जाता है कि महमूद अपने इस फिल्म के संगीत के लिए सचिन देव बर्मन के पास गए थे परन्तु उन्होंने समय के अभाव के कारण इस फिल्म को करने से इंकार कर दिया था. इसी मीटिंग के दौरान वहां पर तबला बजा रहे आर. डी. बर्मन पर महमूद की नज़र पड़ी और उन्होंने अपने फिल्म के संगीत के लिए उन्हें राजी कर लिया. इस फिल्म के बाद महमूद और आर. डी. बर्मन में गहरा दोस्ताना संबंध स्थापित हो गया था. इसी संबंधों के कारण वर्ष 1965 में महमूद की फिल्म ‘भूत बंगला’ में आर. डी. बर्मन ने कैमिओ का रोल भी अदा किया था.
एक सफल संगीत निर्देशक के तौर पर आर. डी. बर्मन की पहचान वर्ष 1966 में फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ से बनी. कहा जाता है कि गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने इस फिल्म के प्रोड्यूसर और लेखक नासिर हुसैन के पास आर. डी. बर्मन की सिफारिश की थी. इस फिल्म में कुल छह गाने थे जिसे मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा था और मोहम्मद रफ़ी ने गाया था. फिल्म के चार गानों को मोहम्मद रफ़ी के साथ आशा भोंसले ने भी अपनी आवाज़ दी थी. इस फिल्म की सफलता से उत्साहित होकर नासिर हुसैन ने अपनी अगली छह फिल्मों के लिए आर. डी. बर्मन और मजरूह सुल्तानपुरी को इकठ्ठा साइन कर लिया था. वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘पड़ोसन’ के गीत-संगीत के साथ आर. डी. बर्मन एक सफल संगीतकार के रूप में हिंदी सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हो चुके थे. हालाँकि इस दौरान भी वह अपने पिता सचिन देव बर्मन के साथ सहायक के तौर पर जुड़े रहे और 1967 में ‘ज्वेलथीफ’ और 1970 में ‘प्रेम पुजारी’ जैसी सफल फिल्मों के संगीत में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. वर्ष 1969 में प्रदर्शित हुई राजेश खन्ना अभिनीत सुपर हिट फिल्म ‘आराधना’ का संगीत हालाँकि सचिन देव बर्मन के नाम है परन्तु कहा जाता है कि इसके गीत ‘मेरे सपनों की रानी…’ और कोरा कागज़ था यह मन मेरा..’ आर. डी. बर्मन की रचना थी. इस चर्चा की वजह फिल्म के संगीत की रिकॉर्डिंग के दौरान सचिन देव बर्मन का बीमार हो जाना और फिर इस जिम्मेदारी को आर. डी. बर्मन द्वारा पूरा किया जाना है. इस सफलता के लिए फिल्म के क्रेडिट में उनका नाम एसोसिएट म्यूजिक कंपोजर के रूप में दिया गया.
आर. डी. बर्मन का स्वर्णिम 70 और 80 का दशक (R. D. Burman’s Golden Decade of 70’s and 80’s)
यूँ तो आर. डी. बर्मन ने 60 के दशक में ही ‘तीसरी मंजिल’ फिल्म से हिंदी सिनेमा में भारतीय और पाश्चात्य संगीत के मिश्रण से एक नए और सुपर हिट प्रयोग का आगाज कर दिया था परन्तु 70 और 80 में उनका यह प्रयोग और भी परवान चढ़ा. उनके इस प्रयोग में अपने दमदार स्वर से उनका साथ दिया किशोर कुमार और आशा भोंसले ने. वर्ष 1970 में शक्ति सामंत द्वारा निर्देशित फिल्म ‘कटी पतंग’ को एक म्यूजिकल सुपरहिट फिल्म माना जाता है. यह आर. डी. बर्मन के लिए एक बड़ी सफलता थी. उस दौरान ‘ये जो मोहब्बत है…’ और ‘ये शाम मस्तानी…’ जैसी गीतों को रचकर आर. डी. बर्मन ने पूरे देश को मस्ती के आगोश में झुमने को मजबूर कर दिया था. इसी वर्ष उनकी एक और फिल्म देवानंद अभिनीत ‘हरे राम हरे कृष्णा’ आई और आशा भोंसले की आवाज़ में उनके द्वारा संगीतबद्ध गीत ‘दम मारो दम…’ ने ऐसा तहलका मचाया कि सभी आर. डी. बर्मन के दीवाने हो गए.
ऐसा भी नहीं है कि आर. डी. बर्मन ने केवल पाश्चात्य संगीत के सहारे ही अपना दमखम दिखाया बल्कि उन्होंने भारतीय संगीत को भी नए तरीके से पेश करने का जोखिम उठाया था. वर्ष 1971 में फिल्म ‘अमर प्रेम’ के गीत ‘रैना बीती जाए…’ के माध्यम से उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नई पहचान देने का प्रयास किया. फिर उसी वर्ष फिल्म ‘बुढा मिल गया’ के गीत ‘रात कली एक ख्वाब में आई…’ उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ. वर्ष 1971 में फिल्म ‘कारवां’ का गीत ‘पिया तू अब तो आ जा…’ आर. डी. बर्मन की सफलता में एक नया मुकाम लेकर आया. इस फिल्म के संगीत के लिए उन्हें पहली बार फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नामांकित (Nomination) किया गया था. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों को यादगार गीत-संगीत से संवारा जिनमें प्रमुख हैं – सीता और गीता, अपना देश, यादों की बारात, आप की कसम, शोले, आंधी आदि. फिल्म शोले में संगीत के साथ-साथ एक गाने ‘महबूबा महबूबा…’ को उन्होंने अपनी आवाज़ भी दी थी. यह गाना भी काफी हिट रहा था. 70 के दशक के अंतिम वर्षों में उन्होंने फिल्म ‘हम किसी से कम नहीं’ के सुपरहिट गीत ‘क्या हुआ तेरा वादा…’ और ‘तुमने कभी किसी से प्यार किया…’ की रचना के साथ ही कसमें वादे, गोलमाल और खूबसूरत जैसी फिल्मों के लिए भी कालजयी संगीत की रचना की थी.
आर. डी. बर्मन के साथ एक दिलचस्प तथ्य भी जुड़ा हुआ है. इन्होंने राजेश खन्ना और किशोर कुमार के साथ लगभग 32 फिल्मों में काम किया है. उस दौर में इन तीनों की तिकड़ी को सफलता का पर्याय माना जाने लगा था. इससे इत्तर एक तथ्य यह भी है कि आर. डी. बर्मन ने राजेश खन्ना की 40 फिल्मों में संगीत दिया है. 80 के दशक में इन्होंने कई नवोदित गायकों को ब्रेक देकर हिंदी सिनेमा से परिचय कराया था. इनमें कुमार शानू, अभिजीत और मोहम्मद अज़ीज़ का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है.
80 के दशक के उतरार्घ में आर. डी. बर्मन के संगीत का जादू कमजोर पड़ने लगा था. इसकी वजह से हिंदी सिनेमा में वह एक बड़ा बदलाव था जिसमे गीत और संगीत की भूमिका नदारद होती जा रही थी और फिल्म का कथानक, मारधार और हिंसा के इर्द गिर्द घूमने लगा था. इसके अलावा बप्पी लाहरी जैसे संगीतकारों के डिस्को स्टाइल से संगीत के बोल और धुन भी बदलने लगे थे. इस बदलाव में अपने आपको ढालना आर. डी. के लिए संभव नहीं था. अतः फिल्म निर्माता उनसे दूर होने लगे. परन्तु वर्ष 1986 में आर. डी. बर्मन ने फिल्म ‘इजाज़त’ के लिए संगीत की रचना की और उनका यह संगीत उनके द्वारा की गई सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में शामिल हो गया. इस फिल्म का गीत ‘मेरा कुछ सामान…’ आलोचकों की जुबां पर छा गया और सर्वत्र उसकी प्रशंसा हुई. परन्तु इस गीत के लिए आशा भोंसले को जहाँ सर्वश्रेष्ठ गायिका और गुलज़ार को सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया वहीँ आर. डी. बर्मन को कुछ नहीं मिला. संभवतः वे इस पीड़ा को सहन नहीं कर सके और 1988 में उन्हें दिल का आघात लगा और बाईपास सर्जरी करानी पड़ी. इसके बाद वर्ष 1989 में विधु विनोद चोपड़ा ने उन्हें अपनी फिल्म ‘परिंदा’ के लिए संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी दी थी. कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने कई तरानों (Tunes) की रचना की थी परन्तु वह कभी रिलीज नहीं हो सके. उन्होंने अंतिम फिल्म दक्षिण के निर्माता प्रियदर्शन की मलयालम भाषा की फिल्म साइन की थी परन्तु इसी बीच उनकी मृत्यु हो गई. मृत्यु के बाद वर्ष 1994 में आर. डी. बर्मन द्वारा संगीत निर्देशित फिल्म ‘1942 : ए लव स्टोरी’ को प्रदर्शित किया गया और इस फिल्म के गीत-संगीत ने सफलता का एक नया इतिहास रचा. इस फिल्म में सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए आर. डी. बर्मन को मरणोपरांत फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया था.
आर. डी. बर्मन की निजी जिन्दगी (Personal Life of R. D. Burman)
संगीत के जादूगर आर. डी. बर्मन जहाँ अपने पेशेवर जीवन के शुरूआती दौर में काफी सफल रहे वहीँ जीवन के अंतिम दौर में उन्हें असफलता के साथ-साथ मानसिक और शारीरिक कष्टों से भी गुजरना पड़ा. वर्ष 1966 में फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ की सफलता के साथ उन्होंने अपना जीवन साथी भी चुन लिया था. रीता पटेल उनकी पहली पत्नी थी. कहा जाता है कि रीता उनकी एक प्रशंसक थी जिससे वह दार्जिलिंग में मिले थे. फिर जल्दी ही उन्होंने शादी कर ली परन्तु सिर्फ पांच वर्ष साथ रहने के बाद 1971 में उनका तलाक हो गया. इसके बाद गायिका आशा भोंसले के साथ इनकी नजदीकियां बढ़ी और दोनों ने वर्ष 1980 में शादी कर ली. यह वह दौर था जब दोनों ने अभूतपूर्व जुगलबंदी करते हुए हिंदी सिनेमा को कई सुपरहिट गाने दिए. परन्तु जीवन के अंतिम समय में उनका आशा भोंसले से भी साथ छूट गया था. इसके बाद उन्हें आर्थिक तंगी के कष्टदायक दौर से गुजरना पड़ा और 4 जनवरी 1994 को उनका देहांत हो गया.
आर. डी. बर्मन को मिले पुरस्कार और सम्मान (Award & Recognition to R. D. Burman)
आर. डी. बर्मन संगीत के सच्चे पुजारी थे. वह पुरस्कार और सम्मान की चिंता किए बगैर अपनी धुन में रमे रहे और सर्वश्रेष्ठ संगीत का रस्वादन संगीत प्रेमियों को कराते रहे. अपने जीवन में ढ़ेरों सर्वश्रेष्ठ गीत देने के बावजूद उनके हिस्से में केवल तीन फिल्मफेयर अवार्ड आए वह भी तब जब उनका करिएर ढलान पर था. उससे पूर्व वह लगभग हर वर्ष फिल्मफेयर अवार्ड के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के वर्ग में नामित होते रहे परन्तु हर बार उन्हें निराश होना पड़ा.
हालाँकि आर. डी. बर्मन के जिंदा रहते उन्हें कोई राष्ट्रीय सम्मान तो नहीं मिला परन्तु वर्ष 2013 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जरूर जारी किया. इसके अलावा ब्रह्मानंद सिंह द्वारा उनके जीवन पर आधारित 113 मिनट के बायोपिक ‘पंचम अन्मिक्सड’ को दो राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं. साथ ही देश-विदेश के कई संगीतकारों ने उनको श्रध्दांजलि देते हुए उनके गानों को रिमिक्स कर फिर से संगीत प्रेमियों के समक्ष परोसने का काबिलेतारीफ प्रयास किया है.
फिल्मफेयर पुरस्कार (Filmfare Awards for Best Music Director)
वर्ष | पुरस्कार का वर्ग | फिल्म |
1983 | सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक | सनम तेरी कसम |
1984 | सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक | मासूम |
1995 | सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक | 1942 : ए लव स्टोरी |
अंततः कहना गलत नहीं होगा कि आर. डी. बर्मन हिंदी सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ की फिल्मों के कालजयी संगीत रचनाकार थे. उन्होंने हिंदी फिल्म संगीत में कई नए प्रयोग कर फिल्म की सफलता को एक नई ऊँचाई तक पहुंचाया था. उनके लगभग हर गीत आज भी हम सबकी जुबां पर अनायास ही आ जाते हैं. दीपावली वेबसाइट और इसकी पूरी टीम का संगीत के इस महान जादूगर को शत-शत नमन!
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FAQ
Ans- आर.डी. बर्मन का जन्म 27 जून 1939 को हुआ।
Ans- किशोर कुमार, मोहम्मद रफी।
Ans- 4 जनवरी 1994 को हुई मृत्यृ।
Ans- आर.डी. बर्मन की दूसरी पत्नी हैं आशा भोसले।
Ans- बिरयानी, मछली कालिया, मटन व्यंजन, क्रेब्स और झींगा, गोयन स्टूज, सरपटेल।
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