बाबा सूरजपाल उर्फ भोले बाबा जीवन परिचय हाथरस कांड (Hathras Kand)

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ क्षेत्र में मंगलवार को एक भयानक घटना घटी। बाबा सूरजपाल उर्फ भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ मच गई, जिसमें 116 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया है और कई सवाल खड़े किए हैं।

हाथरस कांड क्या है?

हाथरस कांड एक दुखद और हृदयविदारक घटना है, जो उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ क्षेत्र में घटी। यह घटना 2 जुलाई 2024 को एक सत्संग के दौरान हुई, जिसे संत सूरजपाल उर्फ भोले बाबा द्वारा आयोजित किया गया था। इस सत्संग में भगदड़ मचने से 116 लोगों की मौत हो गई, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल थे। इसके अलावा, 100 से अधिक लोग घायल हो गए।

इस भगदड़ का मुख्य कारण भीड़ का अत्यधिक बढ़ जाना और आयोजकों द्वारा प्रशासन को सही संख्या न बताना था। सत्संग के समापन के समय भीड़ में घुटन होने लगी, जिससे भगदड़ मच गई।

हाथरस कांड ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया है और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर कई सवाल खड़े किए हैं। घटना के बाद, पुलिस और प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए घायलों को अस्पताल पहुंचाया और मृतकों के शवों की पहचान का कार्य शुरू किया। इस हादसे की न्यायिक जांच की मांग भी उठाई जा रही है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को टाला जा सके।

बाबा सूरजपाल उर्फ भोले बाबा जीवन परिचय

विवरणजानकारी
असली नामसूरजपाल
उपनामभोले बाबा
जन्म स्थानपटियाली गांव, कांशीराम नगर (कासगंज)
पूर्व पेशाउत्तर प्रदेश पुलिस (गुप्तचर विभाग)
सेवा अवधि18 साल
वीआरएसहाँ
सत्संग की शुरुआतआगरा के केदार नगर से
आश्रमबहादुरनगर, कासगंज
प्रमुख पहचानसाकार हरि बाबा, सफेद कपड़े वाले बाबा
प्रमुख स्थानउत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश
विवादहाथरस कांड, कोरोना काल में नियम उल्लंघन

हाथरस की घटना कैसे घटी?

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ क्षेत्र में मंगलवार को भोले बाबा का सत्संग था। इसी सत्संग में अचानक भगदड़ मच गई। इसमें देखते ही देखते 116 लोगों की मौत हो गई। अभी तक करीब 76 शवों की पहचान हो चुकी है। अधिकारियों की मानें तो एटा और हाथरस सटे हुए जिले हैं और सत्संग में एटा के लोग भी शामिल होने पहुंचे थे। इसके अलावा सत्संग में आगरा, संभल, ललितपुर, अलीगढ़, बदायूं, कासगंज, मथुरा, औरैया, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बुलंदशहर, हरियाणा के फरीदाबाद और पलवल, मध्य प्रदेश के ग्वालियर, राजस्थान के डीग आदि जिलों से भी अनुयायी सत्संग में पहुंचे थे। सत्संग खत्म हुआ, बाबा के अनुयायी बाहर सड़क की ओर जाने लगे। बताया जा रहा है कि लगभग 50 हजार की संख्या में अनुयायियों को सेवादारों ने जहां थे, वहीं रोक दिया। सेवादारों ने साकार हरि बाबा के काफिले को वहां से निकाला। उतनी देर तक वहां अनुयायी गर्मी और उमस में खड़े रहे। बाबा के काफिले के जाने के बाद जैसे ही सेवादारों ने अनुयायियों को जाने के लिए कहा, वहां भगदड़ की स्थिति बन गई और यह हादसा हो गया।

हाथरस घटना के पीछे जिम्मेदार कौन है?

इस घटना के पीछे मुख्य रूप से सत्संग आयोजक और प्रशासनिक लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। सत्संग में भीड़ को नियंत्रित करने के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे, जिससे भगदड़ मच गई। साथ ही, भोले बाबा के अनुयायियों की संख्या का सही आंकलन नहीं किया गया था, जिससे प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा गई। कार्यक्रम के आयोजकों ने जितनी भीड़ आने की बात प्रशासन को बताई थी, उससे कहीं ज्यादा लोग वहां पहुंचे थे। अनुयायियों को गर्मी और उमस में खड़े रहने के कारण भगदड़ की स्थिति बन गई और इस हादसे में 116 लोगों की जान चली गई। ऐसे में आयोजकों और प्रशासन की लापरवाही इस घटना के पीछे प्रमुख कारण मानी जा रही है।

प्रशासनिक कार्रवाई

हाथरस कांड के बाद पुलिस और प्रशासन हरकत में आ गए। घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाने का कार्य शुरू किया गया और मृतकों के शवों की पहचान की जा रही है। घटना स्थल पर राहत और बचाव कार्य तेजी से चलाया गया। सरकार ने इस हादसे की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं ताकि घटना के पीछे के असली कारणों का पता लगाया जा सके और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सके। अधिकारियों ने सुनिश्चित किया कि पीड़ित परिवारों को सहायता पहुंचाई जाए और भविष्य में ऐसे हादसों से बचने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं। इसके अलावा, प्रशासन ने इस बात की भी जांच शुरू की है कि सत्संग के आयोजन में कितनी भीड़ की अनुमति दी गई थी और क्या आयोजकों ने नियमों का पालन किया था।

भोले बाबा कौन है?

भोले बाबा, जिनका असली नाम सूरजपाल है, पहले उत्तर प्रदेश पुलिस के गुप्तचर विभाग में नौकरी कर चुके हैं। उन्होंने 18 साल की नौकरी के बाद वीआरएस लिया और प्रवचन करना शुरू कर दिया। बाबा सूरजपाल अब साकार हरि बाबा के नाम से जाने जाते हैं। वह पटियाली गांव के रहने वाले हैं और अपनी पत्नी के साथ सत्संग का आयोजन करते हैं। भोले बाबा का कहना है कि उनके जीवन में कोई गुरु नहीं है और उन्हें भगवान से साक्षात्कार होने के बाद ही उनका झुकाव आध्यात्म की ओर हुआ। वह कासगंज के बहादुरनगर में स्थित अपने आश्रम से सत्संग और पूजा पाठ का आयोजन करते हैं और उनके अनुयायियों की संख्या हजारों में है।

भोले बाबा का इतिहास

संत भोले बाबा का असली नाम सूरजपाल है और वह मूल रूप से कांशीराम नगर (कासगंज) के पटियाली गांव के रहने वाले हैं। बचपन में वह अपने पिता के साथ खेती-बाड़ी का काम करते थे। जब वे जवान हुए तो उत्तर प्रदेश पुलिस में भर्ती हो गए और राज्य के दर्जन भर थानों के अलावा इंटेलिजेंस यूनिट में भी काम किया। 18 साल की नौकरी के बाद उन्होंने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति (VRS) ले ली और आध्यात्मिक जीवन की ओर अग्रसर हो गए।

उन्होंने सफेद कपड़े पहनकर अपनी पहचान बनाई और धीरे-धीरे आसपास की महिलाओं और अन्य भक्तों के लिए बाबा बन गए। सूरजपाल ने अपने आगरा के केदार नगर में एक छोटी सी कुटिया से ही सत्संग और पूजा पाठ करना शुरू किया और थोड़े ही समय में सफेद कपड़ों वाले बाबा के नाम से पहचान बना ली। उनकी अनुयायियों की संख्या उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में बढ़ती गई।

भोले बाबा ने अपने जीवन को मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया और उनके सत्संग में हजारों लोग भाग लेते हैं। हालांकि, उनका विवादों से भी पुराना नाता रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार, 17 साल पहले उन्होंने पुलिस विभाग से नौकरी छोड़कर सत्संग करना शुरू किया था और तब से वे साकार विश्व हरि बाबा के नाम से जाने जाते हैं। उनके अनुयायी उन्हें भोले बाबा कहकर पुकारते हैं।

भोले बाबा कैसे बने?

सूरजपाल उर्फ भोले बाबा ने अपने बाबा बनने की यात्रा आगरा के केदार नगर से शुरू की थी। प्रारंभ में वह अपने परिवार के साथ रहते थे और सफेद कपड़े पहनकर अपनी पहचान बनाई। धीरे-धीरे उन्होंने आसपास के लोगों के बीच अपनी पहचान बनानी शुरू की और विशेष रूप से महिलाओं के लिए बाबा बन गए।

प्रारंभिक सफर:

  1. सफेद कपड़ों की पहचान: सूरजपाल ने सफेद कपड़े पहनकर अपने आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत की। उनके साधारण और शांत व्यक्तित्व ने लोगों को आकर्षित किया और धीरे-धीरे लोग उनके पास आने लगे।
  2. कुटिया से सत्संग: उन्होंने आगरा के केदार नगर में एक छोटी सी कुटिया बनाई और वहीं से सत्संग और पूजा-पाठ करना शुरू किया। उनकी साधना और प्रवचनों ने लोगों को प्रभावित किया और उनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी।
  3. भक्तों की संख्या में वृद्धि: थोड़े ही समय में सफेद कपड़ों वाले बाबा के नाम से उनकी पहचान बन गई। आसपास के लोग उनकी बातों से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बनने लगे। महिलाओं और पुरुषों दोनों ने उनकी शिक्षाओं और प्रवचनों में गहरी रुचि दिखाई।
  4. आश्रम की स्थापना: सूरजपाल ने कासगंज के बहादुरनगर में एक आश्रम स्थापित किया, जहां वे नियमित रूप से सत्संग और प्रवचन करने लगे। उनके अनुयायियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई और वे विभिन्न राज्यों में प्रसिद्ध हो गए।

इस प्रकार, सूरजपाल उर्फ भोले बाबा ने अपने आध्यात्मिक और धार्मिक जीवन की शुरुआत की और धीरे-धीरे एक प्रसिद्ध संत के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। उनकी साधना और प्रवचनों ने हजारों लोगों को प्रभावित किया और उन्हें अपना अनुयायी बना लिया।

हाथरस कांड ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया है और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। भोले बाबा के सत्संग में हुई इस दर्दनाक भगदड़ ने न केवल उनकी छवि को धक्का पहुंचाया है, बल्कि उनकी सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन की तैयारियों की भी पोल खोल दी है। बाबा सूरजपाल उर्फ भोले बाबा का जीवन एक साधारण किसान से लेकर एक प्रसिद्ध संत बनने तक का सफर रहा है, लेकिन इस घटना ने उनके अनुयायियों और समाज के सामने कई चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं। इस हादसे की विस्तृत जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को टाला जा सके और धार्मिक आयोजनों में शामिल लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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