महाभारत के पात्रों का पूर्व जन्म रहस्य | Ramayana Character Names history in hindi

Ramayana Character Names history in hindi

हमने महाभारत के समस्त चरित्रों के पूर्व जन्म और इस जन्म मे पिचले जन्म के कर्मो के फल को बताने का प्रयास किया है. जैसा कि हम जानते है हिन्दू लोग कर्मा में विश्वास रखते है. हिन्दू लोगो की मान्यताओं के अनुसार हमारे कर्म ही हमारे आने वाले जीवन की योजना बनाते है, उनके अनुसार हमारे आज का जीवन हमारे पिछले जन्म के कर्मो से जुड़ा रहता है. कहते है अच्छे कर्म और अच्छे काम से ही हमे अच्छा भविष्य और अच्छा जीवन मिल सकता है. कुछ लोग कर्मा को पुनर्जन्म से भी जोड़ते है. हमारे आज का नाता हमारे पिछले जनम के कामों से जुड़ा हुआ होता है. इसी तरह के माध्यम से हम महाभारत के हर किरदार के साथ जो कुछ भी घटित हुआ, वो उनके पिछले जन्म का फल ही था, उनके पिछले जनम के कर्म की वजह से उन सभी को ये सब झेलना पड़ा. आइये हम महाभारत के कुछ ऐसे ही किरदारों के बारे में बताते है, जो अपने पिछले जन्म के कर्मो के कारण महाभारत का हिस्सा बने.

Mahabharata Characters in Hindi

महाभारत के पात्रों का पूर्व जन्म रहस्य (Ramayana Character Names history in hindi)

भीष्म –

महाभारत मे भीष्म एक मुख्य किरदार थे. इसमे भीष्म के बारे मे बताया है. भीष्म का जन्म पहले वसुस के रूप में हुआ था. वे एक बार अपनी पत्नी प्रभासा के साथ गुरु वसिष्ठ के आश्रम गए. वहां उनकी पत्नी की नजर एक सुंदर सी गाय पर पड़ी, जिसे पाने की वो जिद करने लगी. वसुस ने उन्हें बहुत समझाया कि ये किसी और की है , मगर वे ना मानी सो वसुस ने वो गाय उन्हें दे दी. ये गाय गुरु वसिष्ठ की थी, जब उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने वसुस को श्राप दे दिया कि अगले जनम में वे इन्सान के रूप में जनम लेंगे जो अनंत काल तक जीवित रहेगा. इसके बाद भीष्म का जनम गंगा और शांतनु के आठवे पुत्र देवव्रता के रूप में हुआ, बाद में उनका नाम भीष्म पड़ा. भीष्म के पिता शान्तनु बहुत जल्दी दूसरी स्त्री पर मोहित हो जाया करते थे. एक बार वे राजा चेदी जो कि मछली पकड़ने वाले थे उनकी बेटी सत्यवती के रूप से मोहित हो गए और उनके पिता से विवाह का आग्रह किया. राजा ने ये शर्त रखी कि सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा बनेगा तभी वे अपनी बेटी की शादी उससे करेंगे. इतना ही नहीं उन्होंने ये भी बोला कि आगे भी उसकी बेटी का वंश ही राज गद्दी संभालेगा. शान्तनु ने ये शर्त मान ली लेकिन इसका भुगतान भीष्म को उठाना पड़ा. भीष्म ने अपने पिता की प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य को राजा बना दिया और भविष्य में राज गद्दी को लेकर लड़ाई ना हो जिसके लिए उन्होंने आजीवन विवाह ना करने का निर्णय लिया. यही वजह है कि भीष्म ने कभी विवाह नहीं किया.

धृतराष्ट्र (Dhritarashtra)

इसमे धृतराष्ट्र के कर्मो के बारे मे बताया है. पिछले जनम में ये एक निरंकुश शासक थे, जो बहुत अत्याचारी था. एक बार वे एक झील किनारे घुमने निकले जहां उन्होंने एक सुंदर हंस को देखा जो बहुत सारे लगभग 100 छोटे – छोटे हंसों से घिरा हुआ था. उनको उस हंस की आँख बहुत भा गई जिसे वो अपने महल में सजाना चाहते थे सो उन्होंने अपनी सेना को आदेश दिया की उस हंस की आँख निकाल ले और बाकि छोटे हंसों को मार डाले. इस वजह से ही धृतराष्ट्र अंधे पैदा हुए और उनके 100 पुत्र मार दिए गए.

द्रौपदी (Draupadi)

इसमे द्रौपदी के कर्मो के पिचले जनम के कर्म और उसके फल के बारे मे बताया है. द्रौपदी पिछले जनम में गुरु मोद्ग्ल्या की पत्नी थी जिसका नाम इन्द्रसेना था. काम उम्र में ही इनके पति का निधन हो गया, और अपनी इच्छा पूर्ती के लिए इन्द्रसेना ने शिव की कड़ी तपस्या की. शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान देना चाहा. शिव की खूबसूरती से वे मोहित हो गई और खो गई. इसी बीच उन्होंने 5 बार कह दिया की उन्हें पति चाहिए पति चाहिए. शिव ने उन्हें ये वरदान दे दिया मगर ये भी कहा की उन्हें एक ही जनम में ये वरदान प्राप्त होगा. इस तरह द्रौपदी को पाचं पति मिले.

शिशुपाल (Shishupal) –

 इसमे शिशुपाल के कर्मो के फल बारे मे बताया है. शिशुपाल का जन्म पहले रावन और हिरनकश्यप के रूप में हुआ था. दरअसल वे विष्णु के सेवक थे जिन्हें श्राप मिला था की वे 4 बार जन्म लेंगे और हर बार विष्णु के हाथ मारे जायेंगे.

कर्ण (Karn) – 

कर्ण के जीवन के बारे मे बताया है. कर्ण महाभारत मे एक बहुत ही मुख्य किरदार थे . इसमे कर्ण के बारे मे बताया गया है.कर्ण अपने पिछले जन्म में एक असुर राजा दम्भोद्भावा था. उसने कठिन तपस्या कर सूर्य को खुश किया. वे वरदान में सूर्य से अनंत जीवन मानते है. लेकिन सूर्य ये बोल कर मना कर देते है कि ऐसा नहीं हो सकता. जिसके बाद दम्भोद्भावा उनसे हजारों सेना रुपी कवच की मांग करते है जो उनकी रक्षा करे और ये भी बोलते है की एक कवच को मारने के लिए इन्सान को 1000 वर्ष तक तपस्या करनी होगी और उस कवच के मरते ही वो इन्सान भी मर जायेगा. धरती के सभी लोग इस असुर से परेशान थे तब विष्णु ने इसे मारने का निर्णय लिया और नारा – नारायण जुड़वाँ भाई के रूप में जन्म लिया . नारा उस कवच को मारता था वही नारायण शिव की तपस्या किया करता था. नारा नारायण ने 999 कवच को तो मार दिया लेकिन आखिरी कवच में दम्भोद्भावा सूर्य लोक में जा छुपा. कर्ण का जन्म इसी आखिरी कवच के द्वारा हुआ था. कर्ण ने अपने पिछले जन्म में बहुत पाप किये थे वो एक असुर था. लेकिन वो सूर्य पुत्र था जिस वजह से कर्ण के रूप में उसे बहुत सी शक्तियाँ प्राप्त हुई थी , वो बहुत ही अच्छा योद्धा था.

शिखंडी –

इसमे शिखंडी के जीवन के बारे मे बताया है.अम्बा काशी नरेश की बड़ी पुत्री थी , इसकी दो बहनें अम्बिका और अम्बालिका थी. कशी नरेश ने अपनी पुत्रियों के लिए स्वयंबर करवाया जहाँ बड़े बड़े राजकुमार आये. जिसमें सौबल के राजकुमार शलवा सबसे अच्छे थे. शलवा और अम्बा पहले से एक दुसरे को जानते थे और एक दुसरे को पसंद करते थे . अम्बा ने पहले ही सोच लिया था की वो शलवा को अपना पति चुनेगी. स्वयंबर चलता ही होता है कि तभी वहां भीष्म आ जाते है , भीष्म वहां अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य की शादी के लिए उस स्वयंवर में आते है. यहाँ आकर वो काशी नरेश से कहते है कि “मैं हस्तिनापुर के राजा और अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य की तरफ से आया हूँ , हमेशा से काशी की राजकुमारियां की शादी हस्तिनापुर में होते आई है और आप इस स्वयंवर के द्वारा उस नियम को तोड़ रहे हो और हमें अपमानित कर रहे हो. मैं आपकी पुत्रियों को अपने साथ हस्तिनापुर ले जा रहा हु जहाँ इनकी शादी वहां के राजा के साथ होगी. इस सभा में उपस्थित लोगों में किसी को ऐतराज है तो मुझे रोकने की कोशिश कर सकता है.” तभी शलवा जो अम्बा से प्रेम करता था भीष्म को रोकने की कोशिश करता है लेकिन उसका भीष्म से कोई मेल नहीं होता और उसे हार माननी पड़ती है.

भीष्म तीनों राजकुमारी को अपनी माँ सत्यवती से मिलवाता है . अम्बिका और अम्बालिका तो ख़ुशी से राजा विचित्रवीर्य से विवाह करने को तैयार हो जाती है लेकिन अम्बा जो शल्वा से प्रेम करती है , भीष्म से ये बताती है और शलवा के पास जाने की आज्ञा मानती है. भीष्म उसकी बात मान जाते है और पूरी इज्जत के साथ उसे सौबल भेज देते है. अम्बा सौबल पहुँचती है तो शलवा उसे अपनाने से इंकार कर देते है , उन्हें लगता है भीष्म ने उन्हें भीख में अम्बा लौटा दी है, उन्हें भीष्म से हारने का भी बहुत दुःख होता है. तब अम्बा के पास हस्तिनापुर जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता है, अम्बा इस सब का ज़िम्मेदार भीष्म को मानती है . उन्हें लगता है अगर भीष्म स्वयंबर में नहीं आते तो ऐसा नहीं होता. वो अपने पिता के पास बिना शादी के नहीं जाना चाहती थी क्यूंकि वे जानती थी इससे उनके पिता की बदनामी होगी. तब अम्बा भीष्म के पास जाकर उनसे विवाह करने का आग्रह करती है , लेकिन भीष्म भी धर्म संकट में होते है क्यूंकि उन्होंने आजीवन विवाह ना करने की प्रतिज्ञा ली हुई थी. तो वे अम्बा से विवाह करने को मना कर देते है. तब अम्बा अपने नाना होत्रवाहना के पास जाती है जो उन्हें परशुराम की आराधना करने को कहते है. परशुराम भीष्म के गुरु होते है जिनकी बात भीष्म कभी मना नहीं करते. परशुराम अम्बा की बात सुनते है और उन्हें आश्वासन देते है कि भीष्म से सुनका विवाह वो जरुर करवाएं. परशुराम पहले भीष्म को सलाह देते है लेकिन भीष्म नहीं मानते तब वे उन्हें ऐसा करने की आज्ञा देते है , भीष्म इस आज्ञा को भी अस्वीकारते है. तब परशुराम और भीष्म के बीच युद्ध होता है जो कई दिन चलता है. इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकलता है तब सभी देवी देवता इसे रोकने को बोलते है.

अम्बा अब अपनी देव सुब्रमन्य को पुकारती है जो उन्हें कमल के फूलों की माला देते है जो कभी नहीं सूखती है , और ये भी कहते है कि जो इस माला को पहन लेगा वही भीष्म का दुश्मन होगा और उसी के हाथों भीष्म का वध होगा. अम्बा बहुत सी जगह जाती है मगर कोई भी ऐसा नहीं मिलता जो इस माला को ग्रहण कर भीष्म को चुनौती दे सके. तब अम्बा थक हार कर वो माला पंचाल के राजा द्रौपद के दरवाजे पर रख देती है. इसके बाद अम्बा शिव की तपस्या कर भीष्म का वध करने का वरदान मांगती है , शिव उन्हें वरदान तो देते है लेकिन बोलते है कि ये इस जन्म में नहीं हो सकता उन्हें अगला जन्म लेना होगा. तब अम्बा अपने आप को खुद मार देती है. इसके बाद अम्बा का जन्म द्रौपद की बेटी शिखंडी के रूप में होता है. शिखंडी के जन्म के बाद राजा द्रौपद को देव गन बोलते है कि शिखंडी को एक बेटी की तरह नहीं बल्कि एक बेटे की तरह बड़ा करना. जिसके बाद द्रौपद शिखंडी को एक राजकुमार की तरह सभी प्रकार की शिक्षा देते है. एक दिन शिखंडी खेलते खेलते अपने महल के दरवाजे तक पहुँच जाता है जहाँ वो उस कमल के फूल की माला को देखता है जो अम्बा ने वहां रखी थी . वो माला वैसी ही थी जैसी अम्बा ने रखी थी उसका एक भी फूल सूखा नहीं था. तब शिखंडी उस माला को पहन लेती है, और जैसा की कहा गया था कि जो इस माला को ग्रहण करेगा वो भीष्म की मौत का कारण होगा. महाभारत युद्ध के दौरान शिखंडी ही भीष्म की मौत का कारण होती है.

शिखंडी स्त्री के रूप में पुरुष था. उसका बाहरी शरिर स्त्री जैसा लेकिन आन्तरिक मन सोच पुरुष जैसे थी. जब शिखंडी की शादी एक स्त्री से हुई तो शादी के बाद उसे ज्ञात हुआ की ये पुरुष के रूप में स्त्री है. इसे धोखा समझ कर वो स्त्री अपने पिता के घर चली गई और उसके पिता शिखंडी के पुरे परिवार को तहस नहस कर देने की धमकी देते है. इस बात का ज़िम्मेदार शिखंडी अपने आप को मानता था और उसने तपस्या कर अपने आप को पुरुष बनाने का वरदान माँगा. शिव ने शिखंडी को इस वरदान से परिपूर्ण किया. युध्य में किसी औरत का जाना युद्ध के नीयम के खिलाफ माना जाता था , लेकिन शिखंडी स्त्री रूप में पुरुष था जिस वजह से अर्जुन शिखंडी को कुरुषेत्र में ले जा सके, जब भीष्म उसे देखते है तो तुरंत जान जाते है कि ये अम्बा है, और अपना धनुष नीचे कर देते है क्युकी किसी स्त्री के साथ युध्य करना भी नियम के खिलाफ होता है. जिसके बाद अर्जुन उन पर प्रहार कर देता है. इस तरह शिखंडी जो अम्बा का रूप थी भीष्म की मौत की वजह बनी. शिखंडी की मौत अश्वथामा के हाथों हुई थी. महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पांडव अपनी जीत के बाद अपने महल में सो रहे होते है तभी अश्वथामा पांडव को मरने के लिए उनके कक्ष में ना जाके दुसरे में चला जाता है जहाँ शिखंडी , द्रिश्ताद्य्मना और द्रौपदी के बेटे सो रहे होते है. अश्वथामा उन्हें पांडव समझ के मार डालता है.

विदुर –

इसमे विदुर के समस्त जीवन के बारे मे बताया है. मंडूक मुनि के श्राप के कारण इनका जन्म सूद्र परिवार में हुआ था. ये यमराज का रूप थे. मंडूक मुनि ने इन्हें इसलिए श्राप दिया था क्यूंकि इन्होंने धोखे से बेक़सूर लोगों को मार दिया था. विदूर धृतराष्ट्र और पांडव के सौतेले भाई थे. विचित्रवीर्य हन्तिनापुर के राजा की मौत बिना किसी संतान के हो जाती है. सत्यवती को अपने कुल वंश की चिंता होती है उन्हें लगता है कि अब वंश कैसे बढेगा. तब सत्यवती भीष्म से विचित्रवीर्य की पत्नियों अम्बिका और अम्बालिका से विवाह करने को कहती है लेकिन भीष्म अपनी प्रतीज्ञा के चलते मना कर देते है और उन्हें अपने एक और पुत्र व्यास को बुलाने को बोलते है. व्यास बहुत बड़े ज्ञानी और तपस्वी होते है. सत्यवती व्यास को अपने ज्ञान और तप से अम्बिका और अम्बालिका को गर्भवती करने को बोलते है. व्यास अपनी माँ की बात को मना नहीं कर पाते और अम्बिका और अम्बालिका को एक एक कर अकेले अपने पास बुलाते है. पहले अम्बिका व्यास के पास जाती है , अम्बिका महान योगी व्यास के सामने डर जाती है और अपनी आँख बंद कर लेती है जिस वजह से उनका बीटा अँधा होता है जो धृतराष्ट्र होता है. अब अम्बालिका जाती है, अम्बालिका बहुत डरी सहमी और कमजोर हो जाती है जिस वजह से उनका बेटा कमजोर पैदा होता है जो पांडव होता है. तीसरी बार अम्बिका और अम्बालिका अपनी जगह किसी दासी को भेज देती है , वो दासी पूरी हिम्मत और विश्वास के साथ जाती है , जिसकी वजह से उसका बेटा तंदरुस्त होता है जिसका नाम विदुर होता है. विदुर की माँ सूद्र होती है. विदुर ने अपनी पूरी शिक्षा भीष्म से ग्रहण की थी और वे उन्हें ही अपना पिता मानते थे. अच्छी जाति और ऊँचे खानदान में जन्म ना होने के कारण विदुर को हमेशा नाकारा गया. वे धृतराष्ट्र और पांडव से बड़े थे और राजा बनने के लिए सबसे उपयुक्त थे तब भी वे नहीं बन सके. धृतराष्ट्र के अंधे होने की वजह से पांडव को राजा बनाया गया जिसका समर्थन विदुर ने भी किया. विदुर हस्तिनापुर के महामंत्री थे जिनसे पूछे बिना राजा कोई काम नहीं करता था. पांडव की मौत के बाद धृतराष्ट्र राजा बने और विदुर उनके महामंत्री. कहते है विदुर धृतराष्ट्र का दायाँ हाथ हुआ करते थे. उनसे पूछे बिना कोई भी निर्णय नहीं लिया जाता था. विदुर बहुत ज्ञानी पुरुष थे.

अर्जुन और कृष्णा –

अर्जुन और कृष्णा महाभारत के अहम् character है. इसके माध्यम से उनके जीवन मे प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है. कृष्णा ने भागवत गीता में अर्जुन से कहा था की वो नारा और कृष्णा हरी नारायण है. नारा और नारायण विष्णु का रूप थे. कर्ण जो दम्भोद्भावा का रूप था जिसके 999 कवच तो नारा और नारायण ने मार दिए थे लेकिन एक जो बच गया था और कर्ण के रूप में जन्म लिया था उसे मारने के लिए नारा और नारायण अर्जुन और कृष्ण के रूप में आते है . यही वजह है कि अर्जुन और कृष्ण के बीच गहरी दोस्ती रहती है दोनों के बीच अनूठा ही रिश्ता होता है. नारा के रूप में अर्जुन ही फिर कर्ण का वध करता है .

अभिमन्यु –

 इसमे अभिमन्यु के पिचले जनम के कर्म और उसके फल के बारे मे बताया गया है. अभिमन्यु ने पहले कल्यावना के रूप में जन्म लिया था. कृष्णा ने इसे मार डाला था और इसके शरीर को जला दिया था. लेकिन कृष्णा ने इसकी आत्मा को एक कपडे से बांध दिया था और अपने महल द्वारका ले आये थे, जहां उन्होंने इसे एक डब्बे में बंद कर दिया था. भीम और हिद्म्बा का पुत्र घटोत्काचा उस समय द्वारका में रहता था. उसे हिद्म्बा ने सुभद्रा (अर्जुन की पत्नी) की रक्षा के लिए भेजा था, क्यूंकि उस समय पांडव वन में अपना वनवास काट रहे थे. किसी वजह से कृष्णा ने घटोत्काचा को डांट दिया जिससे नाराज हो कर घटोत्काचा कृष्णा की शिकायत करने सुभद्रा के पास गए. तब सुभद्रा कृष्णा से बात करने के लिए उनके पास जाती है, कृष्णा वहां नहीं होते है तब सुभद्रा की नजर उस अद्भूत से डब्बे पार पड़ती है जिसे देखने की चाह में सुभद्रा उसे खोल देती है और फिर उसमे से अद्भूत सा प्रकाश निकलता है जिसे सुभद्रा के गर्भ के रूप में धारण कर लेती है और बेहोश हो जाती है. यही कल्यावना का जन्म फिर अभिमन्यु के रूप में होता है. यही कारण है की कृष्णा ने चक्रव्यू का आधा रहस्य ही सुभद्रा को सुनाया था जब अभिमन्यु उनके गर्भ में था. अभिमन्यु चक्रव्यू में घुसने का रास्ता तो जानते थे किन्तु बाहर निकलने का रास्ता उन्हें ज्ञात नहीं था. ये भी कहा जाता है की अभिमन्यु को चन्द्र देव ने भेजा था जो सिर्फ 16 वर्ष तक प्रथ्वी में रह सकता था. कृष्णा और अर्जुन ये बात जानते थे की अभिमन्यु को चक्रव्यू में सिर्फ घुसने का रास्ता पता है वो बाहर नहीं निकाल सकता फिर भी उन्होंने उसे नहीं रोका क्युकी वो जानते थे की उसकी जीवन सिर्फ 16 वर्षो का है जो अब ख़तम होने वाला है. यही वजह थी की अभिमन्यु 16 वर्ष की आयु में महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण के हाथों मारे जाते है. कर्ण को अभिमन्यु से युद्ध करते समय ये पता होता है कि वो उसके भाई का पुत्र है, कुंती एक दिन पहले ही उसे बताती है कि वो उसका बड़ा पुत्र और पांडवो का भाई है. किन्तु तब भी कर्ण अभिमन्यु को मार देता है क्यूंकि वो अर्जुन से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था.

एकलव्य –

 इसमे एकलव्य के कर्मो के पिचले जनम के कर्म और उसके फल के बारे मे बताया गया है. एकलव्य कृष्ण के चचेरे भाई थे. वो देवश्रवा के पुत्र थे, देवश्रवा वासुदेव के भाई थे. देवश्रवा जंगल में खो जाते है जिसे हिरान्यधाणु ढूडते है, इसलिए एकलव्य हिरान्यधाणु के पुत्र कहलाते है. एकलव्य धनुर विद्या सीखने गुरु द्रोण के पास जाते है. द्रोण को जब पता चलता है एकलव्य नीची जाती का है तो वो उसे अपने आश्रम से बाहर निकाल देते है और धनुर विद्या सीखाने से मना कर देते है. इसके बाद एकलव्य द्रोण की मूर्ती बना कर उसके सामने धनुर विद्या का ज्ञान प्राप्त करते है. कहते है एकलव्य अर्जुन से भी महान धनुरवादी था जब ये बात द्रोण को पता चली तो उन्होंने एकलव्य से अपनी गुरु दक्षिणा मांगी. द्रोण ने एकलव्य से उसके दाये हाथ का अंगूठा माँगा जिससे वो कभी धनुष ना चला सके. एकलव्य ने एक अच्छे शिष्य होने के नाते उन्हें अपना अंगूठा दे दिया. एकलव्य की मौत कृष्ण के द्वारा रुकमनी स्वयंवर के दौरान हुई थी ,वे अपने पिता की रक्षा करते हुए मारे गए. इसके बाद कृष्ण ने एकलव्य को द्रोण से बदला लेने के लिए फिर से जन्म लेने का वरदान दिया. एकलव्य ने फिर धृष्टद्युम्न के रूप में जन्म लिया , ये द्रौपद नरेश का पुत्र और द्रौपदी का भाई था जिसे द्रौप्दा नाम से भी जाना जाता था. महाभारत युध्य में द्रौप्दा भी शामिल था और उसने द्रोण को मार कर अपना बदला लिया था.

ध्रिस्ताकेतु –

 इसमे ध्रिस्ताकेतु के कर्मो के पिचले जनम के कर्म और उसके फल के बारे मे बताया गया है. ध्रिस्ताकेतु शिशुपाल का पुत्र था. ये एक महान योध्या था. भीष्म पितामह भी इसे एक अच्छा और महान योध्या मानते थे. ध्रिस्ताकेतु का वध अर्जुन के हाथों महाभारत युद्ध के दौरान हुआ था.

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