सत्य पर आधारित कहानी – इन्सान तय करता हैं दुःख क्या हैं ईश्वर नहीं

हिंदी कहानियाँ  जीवन को मार्गदर्शन देती हैं .अगर अपनी बात कहानी के जरिये किसी को समझाये तब वह गहरी छाप छोड़ती हैं . ऐसी ही एक सत्य कहानी  आपके लिए लिखी गई हैं जो मेरे जीवन का आईना हैं जिसे आपके सामने रखा हैं .

सत्य कहानी: इन्सान तय करता हैं, दुःख क्या हैं ईश्वर नहीं  Real Moral Story in Hindi

एक खुशहाल परिवार जिसमे माता पिता, दादा और भाई बहन थे .उन्हें अपनी खुशियों पर नाज़ था एक दिन ऐसा आया, जब पिता ने साथ छोड़ दिया |अपने बेटे के चले जाने से दादाजी को बेहद अफ़सोस था पर उन्होंने अपनी बहू और पौते और पौती के भविष्य को पहला स्थान दिया और अपने ग़मों को छोड़ कर नयी राह पर चलने का जस्बा अपने घर वालो को दिया

लेकिन एक साल बाद ही उनके पोते की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई . यह वक्त बहुत गम्भीर था पर इस वक्त में भी दादाजी और उनकी बहू ने सैयम से काम लिया. घर कि बेटी की और ध्यान देते हुए आगे बढ़े . समय के साथ ढलती उम्र के कारण दादाजी ने भी विदा ले ली . अब घर में बस माँ और उनकी बेटी थी . एक खुशहाल परिवार बिखर गया था .

अब बेटी बड़ी हो रही हैं  जिसके जीवन के अहम् फैसले उसके सामने हैं पर मन में उदासी और बैचेनी हैं .महज़ 14 वर्षकी आयु में पिता और फिर भाई को खो देने की तकलीफ हैं. पर हमेशा अपनी माँ की सीख पर जीवन में आगे बढ़ती रही हमेशा एक हँसता हुआ चेहरा लिए ही उसने अपने जीवन को गले लगा रखा था .

True Story of Mother & daughter in Hindi

एक दिन अकेलेपन के बाण टूट गए और उसने भरी हुई आँखों से अपनी माँ से पूछा – माँ आप हमेशा कहती हो कि हमारी जिन्दगी बहुत अच्छी हैं दुनिया में बहुत तकलीफ हैं पर हमारे साथ ईश्वर हैं लेकिन मुझे तो यह नहीं लगता एक एक करके सब चले गए आज केवल उनकी यादे हैं . तब माँ ने उसे जवाब दिया – बेटा! मैं मानती हूँ तूने बहुत कम उम्र में अपने पिता और भाई को खो दिया, तुझे उनकी कमी महसूस होती हैं पर बेटा तेरे पिता ने इस तरह कि व्यवस्था की थी कि हमें कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ा , ना हमारे सर से छत हटी और ना कभी तेरी परवरिश में कोई कमी आई . तेरे और मेरे नसीब में उन सबसे दूर जाना तय था पर ईश्वर में विश्वास रखते हुए हमने हमेशा उसका आदर करके जिन्दगी को गले लगाया उस कारण ही हमें इस दुःख को जी जाने की ताकत मिली . अगर यह हिम्मत नहीं होती तो आज हमारी जिन्दगी एक अभिशाप बन जाती हैं.

Moral Of The Story:

ख़ुशी और गम एक ही सिक्के के दो पहलु हैं और हर एक पहलु जिन्दगी में दस्तक देता हैं बस व्यक्ति को गम को बड़ा नहीं बल्कि छोटा करके देखना चाहिए .अक्सर ही मनुष्य यह सोचता हैं कि दूसरों के पास कितना पैसा हैं, खुशियाँ हैं, मेरे पास कुछ नहीं . ऐसी सोच हमेशा तकलीफ को बढ़ाती हैं और कामयाबी से दूर ले जाती हैं .

जबकि अगर व्यक्ति ऐसा सोचे की अगला कितना दुखी हैं उसके तकलीफों से अपनी खुशियों का माप दंड करे तो उसे ईश्वर की दी जिन्दगी पर अभिमान होगा. सत्य कहानी (Real Moral Story in Hindi) इन्सान तय करता हैं, दुःख क्या हैं ? ईश्वर नहीं आपको कैसी लगी कमेंट करें .

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